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स्वच्छन्द इच्छा का उपहार पाकर, [[Special:MyLanguage/soul|जीवात्मा]] एक ऐसे स्तर पर रहना चुन सकती है, जहां अच्छाई और [[Special:MyLanguage/evil|बुराई]] समय और स्थान में तुलनात्मक दृष्टिकोण से संबंधित है या फिर आत्मा निरपेक्ष स्तर चुन सकती है, जहां अच्छाई असली सत्य है और बुराई झूठ एवं अवास्तविक - यहाँ आत्मा ईश्वर को जीवंत सत्य के रूप में प्रत्यक्ष देखती है। स्वच्छन्द इच्छा का अर्थ है कि व्यक्ति को ईश्वरीय योजना, ईश्वर के नियमों और प्रेम की चेतना में रहने के अवसर को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार है। | स्वच्छन्द इच्छा का उपहार पाकर, [[Special:MyLanguage/soul|जीवात्मा]] एक ऐसे स्तर पर रहना चुन सकती है, जहां अच्छाई और [[Special:MyLanguage/evil|बुराई]] समय और स्थान में तुलनात्मक दृष्टिकोण से संबंधित है या फिर आत्मा निरपेक्ष स्तर चुन सकती है, जहां अच्छाई असली सत्य है और बुराई झूठ एवं अवास्तविक - यहाँ आत्मा ईश्वर को जीवंत सत्य के रूप में प्रत्यक्ष देखती है। स्वच्छन्द इच्छा का अर्थ है कि व्यक्ति को ईश्वरीय योजना, ईश्वर के नियमों और प्रेम की चेतना में रहने के अवसर को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार है। | ||
ईश्वर की | ईश्वर की स्वच्छन्द इच्छा का उपहार अपने साथ चेतना का एक निश्चित विस्तार लेकर आता है जिसे जीवन काल, जीवनों की एक श्रृंखला और "मनुष्य के निवास की सीमा" के रूप में जाना जाता है।<ref>Acts १७:२६।</ref> इसलिए जीवात्मा की स्वच्छन्द इच्छा के प्रयोग की अवधि न सिर्फ समय और स्थान में सीमित है, बल्कि पृथ्वी पर उसके जन्मों की भी एक निश्चित संख्या में सीमित है। इस समय (जो कि दिनों, वर्षों और आयामों में विभाजित है), के अंत में जीवात्मा का भाग्य इस बात पर निर्भर करता है कि उसने अपनी स्वच्छन्द इच्छा का उपयोग किस प्रकार किया है। | ||
जो जीवात्मा दिव्यता (वास्तविकता) को महिमामय करने का मार्ग चुनती है, वह [[Special:MyLanguage/I AM THAT I AM|ईश्वरीय स्वरुप]] में आध्यात्मिक उत्थान को प्राप्त करती है। और जो मानवीय अहंकार (अवास्तविकता) का महिमामंडन करने का मार्ग चुनती है, वह [[Special:MyLanguage/second death|दूसरी मृत्यु]],<ref>Revसे गुजरती है। २०:६,११-१५; २१:८.</ref> अर्थात उसकी चेतना स्थायी रूप से रद्द हो जाती है और सारी ऊर्जा पवित्र अग्नि से होती हुई [[Special:MyLanguage/Great Central Sun|ग्रेट सेंट्रल सन]] में वापस आ जाती है। | जो जीवात्मा दिव्यता (वास्तविकता) को महिमामय करने का मार्ग चुनती है, वह [[Special:MyLanguage/I AM THAT I AM|ईश्वरीय स्वरुप]] में आध्यात्मिक उत्थान को प्राप्त करती है। और जो मानवीय अहंकार (अवास्तविकता) का महिमामंडन करने का मार्ग चुनती है, वह [[Special:MyLanguage/second death|दूसरी मृत्यु]],<ref>Revसे गुजरती है। २०:६,११-१५; २१:८.</ref> अर्थात उसकी चेतना स्थायी रूप से रद्द हो जाती है और सारी ऊर्जा पवित्र अग्नि से होती हुई [[Special:MyLanguage/Great Central Sun|ग्रेट सेंट्रल सन]] में वापस आ जाती है। | ||
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