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Lemuria/hi: Difference between revisions

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मू (Mu) के मुख्य मंदिर में [[Special:MyLanguage/Divine Mother|दिव्य माँ]] की लौ को दिव्य पिता की लौ (जो सूर्य की सुनहरी नगरी में केंद्रित है) के जोड़ीदार के रूप में स्थापित किया गया था। सुनहरी नगरी के पुजारियों और पुजारिनों ने पवित्र शब्दों और मन्त्रों द्वारा ईश्वर का आह्वान करने के प्राचीन अनुष्ठानों (rituals) द्वारा इस ग्रह पर ब्रह्मांडीय शक्तियों का संतुलन बनाये रखा। मू की विस्तृत कई कॉलोनियों (colonies) में इस तरह की पवित्र चेतना के कई मंदिर स्थापित किये गए। इन मंदिरो की वजह से पृथ्वी और सूर्य के बीच प्रकाश का वृत्तखण्ड (arc of light) बन गया जो पृथ्वी और सूर्य की लौ से अध्यात्मिक ऊर्जा (Logos) को पृथ्वी पर पहुंचाने का कार्य करता था जिससे वस्तुएं भौतिक रूप ग्रहण करती थी।   
मू (Mu) के मुख्य मंदिर में [[Special:MyLanguage/Divine Mother|दिव्य माँ]] की लौ को दिव्य पिता की लौ (जो सूर्य की सुनहरी नगरी में केंद्रित है) के जोड़ीदार के रूप में स्थापित किया गया था। सुनहरी नगरी के पुजारियों और पुजारिनों ने पवित्र शब्दों और मन्त्रों द्वारा ईश्वर का आह्वान करने के प्राचीन अनुष्ठानों (rituals) द्वारा इस ग्रह पर ब्रह्मांडीय शक्तियों का संतुलन बनाये रखा। मू की विस्तृत कई कॉलोनियों (colonies) में इस तरह की पवित्र चेतना के कई मंदिर स्थापित किये गए। इन मंदिरो की वजह से पृथ्वी और सूर्य के बीच प्रकाश का वृत्तखण्ड (arc of light) बन गया जो पृथ्वी और सूर्य की लौ से अध्यात्मिक ऊर्जा (Logos) को पृथ्वी पर पहुंचाने का कार्य करता था जिससे वस्तुएं भौतिक रूप ग्रहण करती थी।   


मू (Mu) पर सदियों से चली आ रही लगातार संस्कृति के दौरान विज्ञान में अत्यधिक प्रगति हुई जिसे दिव्य माँ की सार्वभौमिक एकता के माध्यम को सामने लाया गया। माँ की यही चेतना पृथ्वी पर सभी प्रकार की अभिव्यक्तियों को सफल बनाती है। ईश्वर के प्रति समर्पित लोगों की उपलब्धियाँ इस बात को दर्शाती हैं कि जिस सभ्यता में माँ का सम्मान और आराधना की जाती है, और उनके सम्मान में मंदिर बनाये जाते हैं वह सभ्यता आसमान की ऊंचाइयों को छू सकती है। इससे यह बात भी स्पष्ट होती है कि जब मनुष्य स्वयं को ईश्वर की कृपा से वंचित कर देता है तब वह माँ के दिखाए रास्ते से दूर हो जाता है और अपने [[Special:MyLanguage/seed atom|बीज परमाणु]] में केंद्रित [[Special:MyLanguage/base-of-the-spine chakra|मूलाधार चक्र]] की ऊर्जा का दुरुपयोग करता है - जो भौतिक शरीर में मातृ ज्योति के प्रकाश का स्थान है।
मू (Mu) पर सदियों से चली आ रही लगातार संस्कृति के दौरान विज्ञान में अत्यधिक प्रगति हुई जिसे दिव्य माँ की सार्वभौमिक एकता के माध्यम को सामने लाया गया। माँ की यही चेतना पृथ्वी पर सभी प्रकार की अभिव्यक्तियों को सफल बनाती है। ईश्वर के प्रति समर्पित लोगों की उपलब्धियाँ इस बात को दर्शाती हैं कि जिस सभ्यता में माँ का सम्मान और आराधना की जाती है, और उनके सम्मान में मंदिर बनाये जाते हैं वह सभ्यता आसमान की ऊंचाइयों को छू सकती है। इससे यह बात भी स्पष्ट होती है कि जब मनुष्य स्वयं को ईश्वर की कृपा से वंचित कर देता है तब वह माँ के दिखाए रास्ते से दूर हो जाता है और स्वयं में केंद्रित [[Special:MyLanguage/seed atom|बीज परमाणु]]   [[Special:MyLanguage/base-of-the-spine chakra|मूलाधार चक्र]] की ऊर्जा का दुरुपयोग करता है - जो भौतिक शरीर में मातृ ज्योति के प्रकाश का स्थान है।


<span id="The_Fall_of_man_on_Lemuria"></span>
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