पठन या पढ़ना
अतीत, वर्तमान और भविष्य के दस्तावेज़ों और जीवात्मा की स्मृति की जांच। चेतना के स्तरों की भौतिक स्तर से परे की जांच।
मनौवैज्ञानिक पठन
यदि पठन किसी मनोवैज्ञानिक या फिर सम्मोहन द्वारा प्रतिगमन के माध्यम से किया जाता है, तो यह पृथ्वी के सूक्ष्म शरीर या पृथ्वी की सूक्ष्म पट्टी की जांच तक पहुंच सकता है जिस से मानव चेतना के सभी व्यक्तिगत और ग्रह संबंधी ज्योतिषीय पहलुओं के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकती है।
इस प्रकार का पठन केवल एक आयाम की ही जानकारी देता है - वो इसलिए क्योंकि यह सिर्फ मनुष्य के भौतिक जीवन के अनुभवों को ही देखता समझता है, यह इन अनुभवों का संज्ञान जीवात्मा की आत्मा के साथ मिलन की दृष्टि से नहीं लेता अतः सिर्फ कारण के तल से प्रभाव के तल तक सीमित रहता है। इस प्रकार का पठन अंतर्मन में छुपी हुई गहरी भावनाओं को अवश्य जगाता है परन्तु यह उस उत्साह को नहीं दर्शा पाता जो आत्मा से मिलन होने पर जीवात्मा को मिलता है; यह पठन उस प्रसन्नता को नहीं प्रकट कर पाता जो जीवात्मा को एक अँधेरी रात्रि पर विजय प्राप्त करके मिलती है।
दिव्यगुरूओं द्वारा किया गया पठन
कोई भी दिव्य गुरु किसी चेला के जीवन का पठन इसलिए करते हैं ताकि वह (चेला) अपने जीवन को पूर्णता से देख पाए जिससे उसे निर्णय लेने में आसानी हो, वह सभी जीवन के सभी सबक सीख सके, और अपने कर्मो के अनुसार सही प्रकार से अपने लक्ष्य निर्धारित कर सके। पठन की सहायता से ही एक चेला स्वयं के ऊपर विजय प्राप्त कर सकता है, अपनी समरूप जोड़ी के साथ मिलकर सेवा कर सकता है और अपनी भविष्य की परिकल्पना भी कर सकता है। यह सब तभी संभव है जब वह अपने वर्तमान समय में त्याग की भावना रखे, तथा अपने सभी दायित्वों एवं कर्तव्यों का निर्वाह करने के प्रति प्रतिबद्ध हो।
दिव्य गुरु इस प्रकार के पठन शिष्य को उसकी जिज्ञासा शांत करने के लिए नहीं देते, ना ही वे यह चाहते हैं की शिष्य स्वयं को बहुत महत्वपूर्ण समझे। वह उसे यह ज्ञान इसलिए देते हैं ताकि वह लॉ ऑफ़ वन से जीवात्मा के अलग होने की कीमत चुका सके, अपने कर्म को संतुलित कर सके, पुनर्जन्म के चक्कर से निकल जाए, आई ऍम रेस की सेवा कर सके, अपनी समरूप जोड़ी के साथ मिल सके, और ईश्वर के श्री चरणों में स्थान प्राप्त कर पाए।
दिव्य गुरु पदार्थ के चार स्तरों पर स्व चेतना के साथ आत्मा के एकीकरण का शुद्ध आंकलन करते हैं। वे शिष्यों को उनके वर्तमान जीवन की दिव्य योजना की स्मृति दिलाते हैं और उन्हें पथ पर उनकी प्रगति के बारे में ज्ञान देते हैं। दिव्या गुरु कर्म के स्वामी के मूल्यांकन के आधार पर जीवात्मा के उद्धार के लिए आवश्यक चाज़ों के बारे में बताते हैं। ये सब बातें वो बुक ऑफ़ लाइफ और कीपर ऑफ़ स्क्रॉल में लिखित अभिलेखों से लेते हैं।
चूंकि अवचेतन से लिया गया पाठ उन अभिलेखों को खोलता है जिन्हें इस जीवनकाल के लिए स्व चेतना द्वारा ज्ञान के नाम पर मोहर लगाकर बंद कर दिया गया है, इसलिए दिव्य गुरु ये मंत्रणा देते हैं कि इन अभिलेखों को पढ़ने के बजाय, वायलेट फ्लेम का आह्वान किया जाए ताकि बिना किसी पूर्व जांच के इन अभिलेखों का रूपांतरण कर दिया जाए। ऐसा करने से जीवात्मा प्रतिपल ईश्वर के समीप होती जाती है, तथा अतीत की स्मृतियों को पार कर, शाश्वत वर्तमान में रह अपनी उच्च चेतना द्वारा सुदृढ़ होती है।
वायलेट फ्लेम स्वयं ही जीवात्मा के समक्ष अतीत की झलकियाँ प्रकट कर सकती है क्योंकि ये सभी स्मृतियाँ रूपांतरण के लिए वायलेट फ्लेम में ही प्रवेश करती हैं। वायलेट फ्लेम द्वारा रूपांतरण हमें हमारे बीते हुए कल की गलतियों से मुक्त कर अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानने के लिए स्वतंत्र करता है।
स्रोत
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation