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Lord Maitreya/hi: Difference between revisions

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प्रकाश की प्रियतमा, मेरी समरूप जोड़ी मेरे साथ  उपस्थित है। मैं आपसे इस गौरवशाली प्रकाश के सम्मान में जो मेरी दिव्य पूरक है, खड़े होने का अनुरोध करता हूँ। इस प्रकार मेरी स्त्री प्रतिरूपी आभा का सर्वथा विस्तार होता है ।
प्रकाश की प्रियतमा, मेरी समरूप जोड़ी मेरे साथ  उपस्थित है। मैं आपसे इस गौरवशाली प्रकाश के सम्मान में जो मेरी दिव्य पूरक है, खड़े होने का अनुरोध करता हूँ। इस प्रकार मेरी स्त्री प्रतिरूपी आभा का सर्वथा विस्तार होता है ।


और इसलिए प्रकाश की यह शक्ति मस्तिष्क में, चक्रों में, उसके शिखर में पीली अग्नि की तीक्ष्णता को बढ़ाती रहती है, ताकि सभी सात किरणों का ज्ञान आप तक आ सके और जो लोग नीली किरण के सेवक हैं, वे समझ सकें कि उस किरण के हृदय में त्रिज्योति की लौ का गुणन है..
और इसलिए प्रकाश की यह शक्ति मस्तिष्क में, चक्रों में, उसके शिखर में पीली अग्नि की तीक्ष्णता को बढ़ाती रहती है, ताकि सभी सात किरणों का ज्ञान आप तक आ सके और जो लोग नीली किरण के सेवक हैं, वे समझ सकें कि उस किरण के हृदय में त्रिज्योति की लौ का गुणन है..


यह संसार मैत्रेय बुद्ध और मैत्रेय बुद्ध के सहकर्मियों और सेवकों की प्रतीक्षा कर रहा है और वे मेरी दिव्य पूरक और समरूप जोड़ी की भी प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिसे वे नहीं जानते। इस प्रकार, निर्वाण के सप्तकों से निकलकर, वह प्रकाश के एक स्वर्णिम गोले में अवतरित हुई हैं । आप देखेंगे कि मेरी प्रियतम की यह उपस्थिति आपके लिए मेरे कार्यों को कैसे कई गुना बढ़ा देगी।<ref>मैत्रेय बुद्ध, "मैं सीमा खींचता हूँ!" {{POWref|29|19|, 11 मई, 1986}}</ref>
यह संसार मैत्रेय बुद्ध और मैत्रेय बुद्ध के सहकर्मियों और सेवकों की प्रतीक्षा कर रहा है और वे मेरी दिव्य पूरक और समरूप जोड़ी की भी प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिसे वे नहीं जानते। इस प्रकार, निर्वाण के सप्तकों से निकलकर, वह प्रकाश के एक स्वर्णिम गोले में अवतरित हुई हैं । आप देखेंगे कि मेरी प्रियतम की यह उपस्थिति आपके लिए मेरे कार्यों को कैसे कई गुना बढ़ा देगी।<ref>मैत्रेय बुद्ध, "मैं सीमा खींचता हूँ!" {{POWref|29|19|, 11 मई, 1986}}</ref>
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