Saint Germain/hi: Difference between revisions

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=== मर्लिन ===
=== मर्लिन ===


{{main-hi|Merlin}}
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पाँचवीं शताब्दी में संत जर्मेन मर्लिन के रूप में अवतरित हुए। वे [[Special:MyLanguage/King Arthur|राजा आर्थर]] के दरबार में एक रसायनशास्त्री थे, भविष्यवक्ता और सलाहकार के रूप में कार्य करते थे। युद्धरत सामंतों से विखंडित और सैक्सन आक्रमणकारियों से त्रस्त भूमि में मर्लिन ने ब्रिटेन के राज्य को एकजुट करने के लिए बारह युद्धों (जो वास्तव में बारह दीक्षाएँ थीं) में आर्थर का नेतृत्व किया। उन्होंने [[Special:MyLanguage/Round Table|राउंड टेबल]] की पवित्र अध्येतावृत्ति स्थापित करने के लिए राजा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। मर्लिन और आर्थर के मार्गदर्शन में कैमलॉट [[Special:MyLanguage/mystery school|रहस्य का एक विद्यालय]] था जहाँ वीर पुरुष और स्त्रियां [[Special:MyLanguage/Holy Grail|होली ग्रेल]] के रहस्यों को जानने के लिए अध्ययन करते थे, और स्वयं का आध्यात्मिक विकास भी करते थे।
पाँचवीं शताब्दी में संत जर्मेन मर्लिन के रूप में अवतरित हुए। वे [[Special:MyLanguage/King Arthur|राजा आर्थर]] के दरबार में एक रसायनशास्त्री थे, भविष्यवक्ता और सलाहकार के रूप में कार्य करते थे। युद्धरत सामंतों से विखंडित और सैक्सन आक्रमणकारियों से त्रस्त भूमि में मर्लिन ने ब्रिटेन के राज्य को एकजुट करने के लिए बारह युद्धों (जो वास्तव में बारह दीक्षाएँ थीं) में आर्थर का नेतृत्व किया। उन्होंने [[Special:MyLanguage/Round Table|राउंड टेबल]] की पवित्र अध्येतावृत्ति स्थापित करने के लिए राजा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। मर्लिन और आर्थर के मार्गदर्शन में कैमलॉट [[Special:MyLanguage/mystery school|रहस्य का एक विद्यालय]] था जहाँ वीर पुरुष और स्त्रियां [[Special:MyLanguage/Holy Grail|होली ग्रेल]] के रहस्यों को जानने के लिए अध्ययन करते थे, और स्वयं का आध्यात्मिक विकास भी करते थे।
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=== रोजर बेकन ===
=== रोजर बेकन ===


{{Main-hi|Roger Bacon}}
{{Main-hi|Roger Bacon|रोजर बेकन}}


संत जर्मेन एक जन्म में रोजर बेकन (१२२०-१२९२) थे। बेकन के रूप में वे एक दार्शनिक, फ्रांसिस्कन भिक्षु, शिक्षाविद्, शैक्षिक सुधारक और प्रयोगात्मक वैज्ञानिक थे। वो एक ऐसा युग था जब विज्ञान का मापदंड धर्म और तर्क पर आधारित था, और ऐसे समय में बेकन ने विज्ञान में प्रयोगात्मक पद्धति को बढ़ावा दिया; उन्होंने कहा कि दुनिया गोल है - उन्होंने उस समय के विद्वानों और वैज्ञानिकों की संकीर्ण विचारधारा की निंदा की। उन्होंने कहा कि "सच्चा ज्ञान दूसरों के अधिकार से नहीं उत्पन्न होता और ना ही यह पुरातनपंथी सिद्धांतों के प्रति अंधश्रद्धा से उपजता है।" <ref>हेनरी थॉमस एंड डाना ली थॉमस, ''लिविंग बायोग्राफीज़ ऑफ़ ग्रेट साइंटिस्ट्स'' (गार्डन सिटी, न्यूयॉर्क: नेल्सन डबलडे, १९४१), पृष्ठ १५.</ref> अंततः बेकन ने पेरिस विश्वविद्यालय में व्याख्याता का पद छोड़ दिया और फ्रांसिस्कन ऑर्डर ऑफ़ फ्रायर्स माइनर में शामिल हो गए।
संत जर्मेन एक जन्म में रोजर बेकन (१२२०-१२९२) थे। बेकन के रूप में वे एक दार्शनिक, फ्रांसिस्कन भिक्षु, शिक्षाविद्, शैक्षिक सुधारक और प्रयोगात्मक वैज्ञानिक थे। वो एक ऐसा युग था जब विज्ञान का मापदंड धर्म और तर्क पर आधारित था, और ऐसे समय में बेकन ने विज्ञान में प्रयोगात्मक पद्धति को बढ़ावा दिया; उन्होंने कहा कि दुनिया गोल है - उन्होंने उस समय के विद्वानों और वैज्ञानिकों की संकीर्ण विचारधारा की निंदा की। उन्होंने कहा कि "सच्चा ज्ञान दूसरों के अधिकार से नहीं उत्पन्न होता और ना ही यह पुरातनपंथी सिद्धांतों के प्रति अंधश्रद्धा से उपजता है।" <ref>हेनरी थॉमस एंड डाना ली थॉमस, ''लिविंग बायोग्राफीज़ ऑफ़ ग्रेट साइंटिस्ट्स'' (गार्डन सिटी, न्यूयॉर्क: नेल्सन डबलडे, १९४१), पृष्ठ १५.</ref> अंततः बेकन ने पेरिस विश्वविद्यालय में व्याख्याता का पद छोड़ दिया और फ्रांसिस्कन ऑर्डर ऑफ़ फ्रायर्स माइनर में शामिल हो गए।
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=== क्रिस्टोफर कोलंबस ===
=== क्रिस्टोफर कोलंबस ===


{{Main-hi|Christopher Columbus}}
{{Main-hi|Christopher Columbus|क्रिस्टोफर कोलंबस}}


एक अन्य जन्म में संत जर्मेन अमेरिका के आविष्कारक क्रिस्टोफर कोलंबस (१४५१-१५०६) थे। कोलंबस के जन्म से दो शताब्दी से भी अधिक समय पहले रोजर बेकन कोलंबस की यात्रा के लिए मंच तैयार किया था - उन्होंने अपनी पुस्तक ''ओपस माजस'' में लिखा था कि "यदि मौसम अनुकूल हो तो पश्चिम में स्पेन के अंत और पूर्व में भारत की शुरुआत के बीच का समुद्र की यात्रा कुछ ही दिनों की जा सकती है।"<ref>डेविड वॉलेचिन्स्की, एमी वालेस एंड इरविंग वालेस की पुस्तक ''द बुक ऑफ प्रेडिक्शन्स'' (न्यूयॉर्क: विलियम मोरो एंड कंपनी, १९८०), पृष्ठ ३४६.</ref> हालाँकि यह कथन गलत था क्योंकि स्पेन के पश्चिम में स्थित भूमि भारत नहीं थी, फिर भी यह कथन कोलंबस की खोज में सहायक हुआ था। कोलम्बस ने १४९८ में राजा फर्डिनेंड और रानी इसाबेला को लिखे अपने एक पत्र में ''ओपस माजस'' में लिखी इस बात को उद्धृत किया और कहा कि उनकी १४९२  की यात्रा आंशिक रूप से इसी दूरदर्शी कथन से प्रेरित थी।
एक अन्य जन्म में संत जर्मेन अमेरिका के आविष्कारक क्रिस्टोफर कोलंबस (१४५१-१५०६) थे। कोलंबस के जन्म से दो शताब्दी से भी अधिक समय पहले रोजर बेकन कोलंबस की यात्रा के लिए मंच तैयार किया था - उन्होंने अपनी पुस्तक ''ओपस माजस'' में लिखा था कि "यदि मौसम अनुकूल हो तो पश्चिम में स्पेन के अंत और पूर्व में भारत की शुरुआत के बीच का समुद्र की यात्रा कुछ ही दिनों की जा सकती है।"<ref>डेविड वॉलेचिन्स्की, एमी वालेस एंड इरविंग वालेस की पुस्तक ''द बुक ऑफ प्रेडिक्शन्स'' (न्यूयॉर्क: विलियम मोरो एंड कंपनी, १९८०), पृष्ठ ३४६.</ref> हालाँकि यह कथन गलत था क्योंकि स्पेन के पश्चिम में स्थित भूमि भारत नहीं थी, फिर भी यह कथन कोलंबस की खोज में सहायक हुआ था। कोलम्बस ने १४९८ में राजा फर्डिनेंड और रानी इसाबेला को लिखे अपने एक पत्र में ''ओपस माजस'' में लिखी इस बात को उद्धृत किया और कहा कि उनकी १४९२  की यात्रा आंशिक रूप से इसी दूरदर्शी कथन से प्रेरित थी।
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=== फ्रांसिस बेकन ===
=== फ्रांसिस बेकन ===


{{Main-hi|Francis Bacon}}
{{Main-hi|Francis Bacon|फ्रांसिस बेकन}}


फ्रांसिस बेकन (१५६१-१६२६) एक दार्शनिक, राजनेता, निबंधकार और साहित्यकार थे। बेकन को पश्चिम का अब तक का सबसे बड़ा ज्ञानी और विचारक कहा जाता है। वे विवेचनात्मक तार्किकता (एक तर्क पद्धति है जिसमें विशिष्ट तथ्यों को जोड़कर एक सामान्य निष्कर्ष निकाला जाता है) और वैज्ञानिक पद्धति के जनक माने जाते हैं। वे काफी हद तक इस तकनीकी युग के लिए ज़िम्मेदार हैं जिसमें हम आज जी रहे हैं। वे जानते थे कि केवल व्यावहारिक विज्ञान ही जनसाधारण को मानवीय कष्टों और आम ज़िन्दगी की नीरसता से मुक्ति दिला सकता है और ऐसा होने पर ही मनुष्य आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर हो सकता है, व् उस उत्तम आध्यात्मिकता की पुनः खोज कर सकता है जिसे वह पहले कभी अच्छी तरह से जानता था।
फ्रांसिस बेकन (१५६१-१६२६) एक दार्शनिक, राजनेता, निबंधकार और साहित्यकार थे। बेकन को पश्चिम का अब तक का सबसे बड़ा ज्ञानी और विचारक कहा जाता है। वे विवेचनात्मक तार्किकता (एक तर्क पद्धति है जिसमें विशिष्ट तथ्यों को जोड़कर एक सामान्य निष्कर्ष निकाला जाता है) और वैज्ञानिक पद्धति के जनक माने जाते हैं। वे काफी हद तक इस तकनीकी युग के लिए ज़िम्मेदार हैं जिसमें हम आज जी रहे हैं। वे जानते थे कि केवल व्यावहारिक विज्ञान ही जनसाधारण को मानवीय कष्टों और आम ज़िन्दगी की नीरसता से मुक्ति दिला सकता है और ऐसा होने पर ही मनुष्य आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर हो सकता है, व् उस उत्तम आध्यात्मिकता की पुनः खोज कर सकता है जिसे वह पहले कभी अच्छी तरह से जानता था।
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=== यूरोप का अजूबा आदमी ===
=== यूरोप का अजूबा आदमी ===


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
{{Main-hi|Wonderman of Europe|यूरोप का अजूबा आदमी}}
{{Main|Wonderman of Europe}}
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<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
लोगों को मुक्ति दिलाने की सर्वोपरि इच्छा रखते हुए संत जर्मेन ने [[Special:MyLanguage/Lords of Karma|कर्म के स्वामी]] से भौतिक शरीर में पृथ्वी पर लौटने की अनुमति मांगी और उन्हें यह अनुमति मिल भी गई। वे "ले कॉम्टे डे सेंट जर्मेन" के रूप में प्रकट हुए - एक "चमत्कारी" सज्जन जिन्होंने अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के दौरान यूरोप के दरबारों को चकित कर दिया था। यहीं से उन्हें "द वंडरमैन (एक अजूबा आदमी)" का खिताब मिला।
Desiring above all else to liberate God’s people, Saint Germain sought and was granted a dispensation from the [[Lords of Karma]] to return to earth in a physical body. He appeared as “le Comte de Saint Germain,” a “miraculous” gentleman who dazzled the courts of eighteenth- and nineteenth-century Europe, where they called him “The Wonderman.”
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
वे एक आद्यवैज्ञानिक, विद्वान, भाषाविद्, कवि, संगीतकार, कलाकार, कथाकार और राजनयिक थे। यूरोप के दरबारों में उनकी काफी प्रशंसा की जाती थी। उन्हें मणियों की पहचान थी, उन्हें हीरे और अन्य रत्नों में दोष निकालने के लिए जाना जाता था। साथ ही उन्हें एक हाथ से पत्र और दूसरे हाथ से कविता लिखने जैसे कार्य के लिए भी जाना जाता था। वोल्टेयर के शब्दों में "वे एक ऐसे व्यक्ति थे जो कभी नहीं मर सकता, और जो सब कुछ जानता है।"<ref>वोल्टेयर, ''ओयूव्रेस'', लेट्रे cxviii, सं. बेउचोट, lviii, पृष्ठ ३६०, इसाबेल कूपर-ओकले, ''द काउंट ऑफ़ सेंट जर्मेन'' (ब्लौवेल्ट, एन.वाई.: रुडोल्फ स्टीनर पब्लिकेशंस, १९७०), पृष्ठ ९६ में उद्धृत।</ref> उनका उल्लेख फ्रेडरिक द ग्रेट, वोल्टेयर, होरेस वालपोल और कैसानोवा के पत्रों और उस समय के समाचार पत्रों में मिलता है।
He was an alchemist, scholar, linguist, poet, musician, artist, raconteur and diplomat admired throughout the courts of Europe for his adeptship. He was known for such feats as removing the flaws in diamonds and other precious stones and composing simultaneously a letter with one hand and poetry with the other. Voltaire described him as the “man who never dies and who knows everything.”<ref>Voltaire, ''Œuvres'', Lettre cxviii, ed. Beuchot, lviii, p. 360, quoted in Isabel Cooper-Oakley, ''The Count of Saint Germain'' (Blauvelt, N.Y.: Rudolf Steiner Publications, 1970), p. 96.</ref> The count is mentioned in the letters of Frederick the Great, Voltaire, Horace Walpole and Casanova, and in newspapers of the day.
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<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
परदे के पीछे से वे यह प्रयास कर रहे थे कि [[Special:MyLanguage/French Revolution|फ्रांसीसी क्रांति]] बिना रक्तपात के हो जाए - राजतंत्र को प्रजातंत्र में आराम से बदल दिया जाए ताकि जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों की सरकार हो। लेकिन उनकी इस सलाह को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। यूरोप को एकजुट करने के अपने अंतिम प्रयास में उन्होंने [[Special:MyLanguage/Napoleon|नेपोलियन]] का समर्थन किया, परन्तु नेपोलियन ने अपने गुरु की शक्तियों का दुरुपयोग किया और मृत्यु को प्राप्त किया।
Working behind the scenes, Saint Germain attempted to effect a smooth transition from monarchy to representative government and to prevent the bloodshed of the [[French Revolution]]. But his counsel was ignored. In a final attempt to unite Europe, he backed [[Napoleon]], who misused the master’s power to his own demise.
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
लेकिन इससे भी पहले संत जर्मेन ने अपना ध्यान एक नई दुनिया की ओर मोड़ लिया था। वे संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके [[Special:MyLanguage/George Washington|प्रथम राष्ट्रपति]] के प्रायोजक बने। स्वतंत्रता की घोषणा और संविधान उन्हीं से प्रेरित था। उन्होंने कई ऐसे उपकरणों को बनाने की प्रेरणा भी दी जिनसे शारीरिक श्रम का कम से कम उपयोग हो ताकि मानवजाति कठिन परिश्रम से मुक्त होकर ईश्वर-प्राप्ति के रास्ते पर चल सके।
But even prior to this, Saint Germain had turned his attention to the New World. He became the sponsoring master of the United States of America and of her [[George Washington|first president]], inspiring the Declaration of Independence and the Constitution. He also inspired many of the labor-saving devices of the twentieth century to further his goal of liberating mankind from drudgery that they might devote themselves to the pursuit of God-realization.
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
<span id="Chohan_of_the_Seventh_Ray"></span>
== Chohan of the Seventh Ray ==
== सातवीं किरण के चौहान ==
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, संत जर्मेन ने महिला दिव्यगुरु [[Special:MyLanguage/Kuan Yin|कुआन यिन]] से सातवीं किरण चौहान का पद प्राप्त किया। सातवीं किरण दया, क्षमा और पवित्र अनुष्ठान की किरण है। इसके बाद, बीसवीं शताब्दी में, संत जर्मेन एक बार फिर [[Special:MyLanguage/Great White Brotherhood|श्वेत महासंघ]] (ग्रेट व्हाइट ब्रदरहुड) की एक बाहरी गतिविधि को प्रायोजित करने के लिए आगे बढ़े।
In the latter part of the eighteenth century, Saint Germain received from the lady master [[Kuan Yin]] her office as chohan of the seventh ray—the ray of mercy and forgiveness and of sacred ceremony. And in the twentieth century, Saint Germain stepped forth once again to sponsor an outer activity of the [[Great White Brotherhood]].
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
१९३० के दशक के आरंभ में उन्होंने अपने "पृथ्वी पर कार्यरत सेनापति" जॉर्ज वाशिंगटन से संपर्क किया, और उन्हें एक [[Special:MyLanguage/messenger|संदेशवाहक]] के रूप में प्रशिक्षित किया।  वाशिंगटन ने [[Special:MyLanguage/Godfré Ray King|गॉडफ्रे रे किंग]] के उपनाम से, "अनवील्ड मिस्ट्रीज़", "द मैजिक प्रेज़ेंस" और "द "आई एम" डिस्कोर्सेज़" नामक पुस्तकें लिखीं जिनमें उन्होंने संत जर्मेन द्वारा नए युग के लिए दिए गए निर्देशों के बारे में लिखा। इसी दशक के अंतिम दिनों में न्याय की देवी और अन्य [[Special:MyLanguage/cosmic being|ब्रह्मांडीय प्राणी]] पवित्र अग्नि की शिक्षाओं को मानवजाति तक पहुँचाने और [[Special:MyLanguage/golden age|स्वर्ण युग]] की शुरुआत करने में संत जर्मेन की  सहायता करने पृथ्वी पर अवतरित हुए।
In the early 1930s, he contacted his “general in the field,” the reembodied George Washington, whom he trained as a [[messenger]] and who, under the pen name of [[Godfré Ray King]], released the foundation of Saint Germain’s instruction for the New Age in the books ''Unveiled Mysteries'', ''The Magic Presence'' and ''The “I AM” Discourses''. In the late 1930s, the Goddess of Justice and other [[cosmic being]]s came forth from the Great Silence to assist Saint Germain in his work of bringing the teachings of the sacred fire to mankind and ushering in the [[golden age]].
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
१९६१ में संत जर्मेन ने पृथ्वी पर अपने प्रतिनिधि, संदेशवाहक [[Special:MyLanguage/Mark L. Prophet|मार्क एल. प्रोफेट]] से संपर्क किया और [[Special:MyLanguage/Ancient of Days|प्राचीन काल]] के स्वामी (सनत कुमार) और उनके प्रथम और दूसरे शिष्य शिष्य [[Special:MyLanguage/Gautama|गौतम]] और [[Special:MyLanguage/Lord Maitreya|मैत्रेय]] की स्मृति में [[Special:MyLanguage/Keepers of the Flame Fraternity|लौ रक्षक बिरादरी]] (कीपर्स ऑफ़ द फ्लेम फ्रैटरनिटी) की स्थापना की। इनका उद्देश्य उन सभी लोगों को पुनर्जागृत करना था जो मूल रूप से [[Special:MyLanguage/Sanat Kumara|सनत कुमार]] के साथ पृथ्वी पर आए थे। ये लोग पृथ्वी पर शिक्षकों के रूप में आये थे और इनका काम लोगों की सेवा करना था परन्तु यहाँ आकर वे सब बातें ये बातें भूल गए थे। संत जर्मेन का कार्य उन सबकी स्मृति को पुनर्स्थापित करना था।
In 1961 Saint Germain contacted his embodied representative, the messenger [[Mark L. Prophet]], and founded the [[Keepers of the Flame Fraternity]] in memory of the [[Ancient of Days]] and his first pupil, Lord [[Gautama]]—and the second, [[Lord Maitreya]]. His purpose was to quicken all who had originally come to earth with [[Sanat Kumara]]—to restore the memory of their ancient vow and reason for being on earth today: to serve as world teachers and ministering servants in their families, communities and nations at this critical hour of the turning of cycles.
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
इस प्रकार संत जर्मेन ने मूल लौ रक्षकों को प्राचीन काल के स्वामी की वाणी को ध्यान से सुनने को कहा। उन्होंने इन सभी लोगों को अपनी आत्मा में जीवन की ज्वाला और स्वतंत्रता की पवित्र अग्नि को पुनः प्रज्वलित करने और अपने जीवन को ईश्वर की सेवा में पुनः समर्पित करने के आह्वान दिया। संत जर्मेन लौ रक्षक बिरादरी के शूरवीर सेनाध्यक्ष हैं।
Thus, Saint Germain recalled the original keepers of the flame to hearken to the voice of the Ancient of Days and to answer the call to reconsecrate their lives to the rekindling of the flame of life and the sacred fires of freedom in the souls of God’s people. Saint Germain is the Knight Commander of the Keepers of the Flame Fraternity.
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
<span id="Hierarch_of_the_Aquarian_Age"></span>
== Hierarch of the Aquarian Age ==
== कुम्भ युग के अध्यक्ष ==
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
१ मई १९५४ को संत जर्मेन ने सनत कुमार से शक्ति का प्रभुत्व और ईसा मसीह से अगले दो हज़ार वर्ष की अवधि के लिए मानवजाति की चेतना को निर्देशित का अधिकार प्राप्त किया। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि ईसा मसीह का महत्व कम हो गया है। वे अब उच्च स्तरों पर [[Special:MyLanguage/World Teacher|विश्व गुरु]] के रूप में काम कर रहे हैं, और अपनी चेतना को समस्त मानवजाति के लिए पहले से भी अधिक शक्तिशाली और सर्वव्यापी रूप से दे रहे हैं क्योंकि ईश्वर का स्वभाव निरंतर श्रेष्ठ होना है। हम एक ऐसे ब्रह्मांड में रहते हैं जिसका निरंतर विस्तार होता रहता  है - ब्रह्मांड जो ईश्वर के प्रत्येक पुत्र (सूर्य) के केंद्र से विस्तारित होता है।
On May 1, 1954, Saint Germain received from Sanat Kumara the scepter of power and from the Master Jesus the crown of authority to direct the consciousness of mankind for this two-thousand-year period. This does not mean that the influence of the ascended master Jesus has receded. Rather, as [[World Teacher]] from the ascended level, his instruction and his radiation of the Christ consciousness to all mankind will be even more powerful and all-pervading than before, for it is the nature of the Divine continually to transcend itself. We live in an expanding universe—a universe that expands from the center of each individualized son (sun) of God.
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
इस दो हजार वर्ष की अवधि के दौरान वायलेट लौ का आह्वान कर के हम स्वयं में ईश्वर की ऊर्जा (जिसे हमने हजारों वर्षों की अपनी गलत आदतों द्वारा अपवित्र किया है) को शुद्ध कर सकते हैं। ऐसा करने से समस्त मानवजाति भय, अभाव, पाप, बीमारी और मृत्यु से मुक्त हो सकती है, और सभी मनुष्य स्वतंत्र रूप से प्रकाश में चल सकते हैं।
This dispensation means that we are now entering a two-thousand-year period when, by invoking into our beings and worlds the violet transmuting flame, the God-energy that the human race has misqualified for thousands of years may now be purified and all mankind cut free from fear, lack, sin, sickness and death, and all may now walk in the light as God-free beings.
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
[[Special:MyLanguage/age of Aquarius|कुंभ युग]] की शुरुआत में  संत जर्मेन कर्म के स्वामी के समक्ष गए और उनसे वायलेट लौ को आम इंसानों तक पहुंचाने की आज्ञा मांगी। इसके पहले तक वायलेट लौ का ज्ञान श्वेत महासंघ के आंतरिक आश्रमों और [[Special:MyLanguage/mystery school|रहस्यवाद के विद्यालयों]] में ही था। संत जर्मेन हमें वायलेट लौ के आह्वान से होने वाले लाभ के बारे में बताते हैं:  
At this dawn of the [[age of Aquarius]], Saint Germain has gone before the Lords of Karma and received the opportunity to release the knowledge of the violet flame outside of the inner retreats of the Great White Brotherhood, outside of the [[mystery school]]s. Saint Germain tells us of the benefits of invoking the violet flame:
</div>


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In some of you a hearty amount of karma has been balanced, in others hardness of heart has truly melted around the [[heart chakra]]. There has come a new love and a new softening, a new compassion, a new sensitivity to life, a new freedom and a new joy in pursuing that freedom. There has come about a holiness as you have contacted through my flame the priesthood of the Order of Melchizedek. There has come a melting and dissolving of certain momentums of ignorance and mental density and a turning toward a dietary path more conducive to your own God-mastery.
आपमें से कुछ लोगों के अधिकतर कर्म संतुलित हो गए हैं, कुछ के [[Special:MyLanguage/heart chakra|हृदय चक्र]] निर्मल हो गए हैं। जीवन में एक नया प्रेम, नई कोमलता, नई करुणा, जीवन के प्रति एक नई संवेदनशीलता, एक नई स्वतंत्रता और उस स्वतंत्रता की खोज में एक नया आनंद आ गया है। एक नई पवित्रता का उदय भी हुआ है क्योंकि मेरी लौ के माध्यम से आपका मेलकिडेक समुदाय के पुरोहितत्व से संपर्क हुआ है। अज्ञानता और मानसिक जड़ता कुछ सीमा तक समाप्त हुई है, और लोग एक ऐसे रास्ते पर  चल पड़े हैं जो उन्हें ईश्वर तक पहुंचाता है।
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
वायलेट लौ ने पारिवारिक रिश्तों में मदद की है। इसने कुछ लोगों को अपने पुराने कर्मों को संतुलित करने में सहायता की है और वे अपने पुराने दुखों से मुक्त होने लगे हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि वायलेट लौ में ईश्वरीय न्याय की लौ निहित है, और ईश्वरीय न्याय में ईश्वर का मूल्याङ्कन। इसलिए हम ये कह सकते हैं कि वायलेट लौ एक दोधारी [[Special:MyLanguage/sword|तलवार]] के सामान है जो सत्य को असत्य से अलग करती है...
The violet flame has assisted in relationships within families. It has served to liberate some to balance old karmas and old hurts and to set individuals on their courses according to their vibration. It must be remembered that the violet flame does contain the flame of God-justice, and God-justice, of course, does contain the flame of the judgment; and thus the violet flame always comes as a two-edged [[sword]] to separate the Real from the unreal....
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
वायलेट लौ के अनेकानेक लाभ हैं पर उन सभी को यहाँ गिनाना संभव नहीं, लेकिन यह अवश्य है इसके प्रयोग से मनुष्य के भीतर एक गहन बदलाव होता है। वायलेट लौ हमारे उन सभी मतभेदों और मनोवैज्ञानिक समस्यायों का समाधान करती है जो बचपन से या फिर उसे से भी पहले पिछले जन्मों से चली आ रही हैं और जिन्होंने हमारी चेतना में इतनी गहरी जड़ें जमा ली हैं कि वे जन्म-जन्मांतर से वहीँ स्थित हैं।<ref>संत जर्मेन, "कीप माई पर्पल हार्ट," {{POWref|३१|७२}}</ref>
Blessed ones, it is impossible to enumerate exhaustively all of the benefits of the violet flame but there is indeed an alchemy that does take place within the personality. The violet flame goes after the schisms that cause psychological problems that go back to early childhood and previous incarnations and that have established such deep grooves within the consciousness that, in fact, they have been difficult to shake lifetime after lifetime.<ref>Saint Germain, “Keep My Purple Heart,{{POWref|31|72}}</ref>
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</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
<span id="Alchemy"></span>
== Alchemy ==
== आद्यविज्ञान ==
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<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
{{Main-hi|Alchemy|आद्यविज्ञान}}
{{Main|Alchemy}}
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
संत जर्मेन ने अपनी पुस्तक "सेंट जर्मेन ऑन अल्केमी" में आद्यविज्ञान की शिक्षा देते हैं। वे [[Special:MyLanguage/Amethyst (gemstone)|एमेथिस्ट (रत्न)]] का उपयोग करते हैं — यह आद्द्यवैज्ञनिकों का रत्न है, कुंभ युग का रत्न है और वायलेट लौ का भी। स्ट्रॉस के वाल्ट्ज़ में वायलेट लौ का स्पंदन है और यह आपको उनके साथ तालमेल बिठाने में मदद करता है। उन्होंने हमें यह भी बताया है कि [[Special:MyLanguage/Franz Liszt|फ्रांज़ लिज़्ट]] का "राकोज़ी मार्च" उनके हृदय की लौ और वायलेट लौ के सूत्र को धारण करता है।
Saint Germain teaches the science of alchemy in his book ''Saint Germain On Alchemy''. He uses the [[Amethyst (gemstone)|amethyst]]—the stone of the alchemist, the stone of the Aquarian age and the violet flame. The waltzes of Strauss carry the vibration of the violet flame and will help to put you in tune with him. He has also told us that the “Rakoczy March,” by [[Franz Liszt]], carries the flame of his heart and the formula of the violet flame.
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
<span id="Retreats"></span>
== Retreats ==
== आश्रयस्थल ==
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
{{main-hi|Royal Teton Retreat|रॉयल टेटन रिट्रीट}}
{{main|Royal Teton Retreat}}
</div>


<div lang="en" dir="ltr" class="mw-content-ltr">
{{main-hi|Cave of Symbols|केव ऑफ सिम्बल्स}}
{{main|Cave of Symbols}}
</div>


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संत जर्मेन का ध्यान सहारा रेगिस्तान के ऊपर स्थित स्वर्णिम [[Special:MyLanguage/etheric city|आकाशीय शहर]] में केंद्रित है। वे [[Special:MyLanguage/Royal Teton Retreat|रॉयल टेटन रिट्रीट]] के साथ-साथ टेबल माउंटेन, व्योमिंग स्थित अपने भौतिक/आकाशीय आश्रय स्थल, [[Special:MyLanguage/Cave of Symbols|केव ऑफ सिम्बल्स]] में भी पढ़ाते हैं। इसके अतिरिक्त वे महान दिव्य निर्देशक के केंद्रों —भारत में [[Special:MyLanguage/Cave of Light|केव ऑफ लाइट]] और ट्रांसिल्वेनिया में [[Special:MyLanguage/Rakoczy Mansion|राकोज़ी हवेली]] में भी कार्य करते हैं, जहाँ वे धर्मगुरु के रूप में विराजमान हैं। हाल ही में उन्होंने दक्षिण अमेरिका में [[Special:MyLanguage/God and Goddess Meru|मेरु देवी और देवता]] के आश्रय स्थल में भी अपना केंद्र स्थापित किया है।
Saint Germain maintains a focus in the golden [[etheric city]] over the Sahara Desert. He also teaches classes at the [[Royal Teton Retreat]] as well as his own physical/etheric retreat, the [[Cave of Symbols]], in Table Mountain, Wyoming. In addition, he works out of the Great Divine Director’s focuses—the [[Cave of Light]] in India and the [[Rakoczy Mansion]] in Transylvania, where he presides as hierarch. More recently he has established a base in South America at the retreat of the [[God and Goddess Meru]].
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उनका इलेक्ट्रॉनिक स्वरुप [[Special:MyLanguage/Maltese cross|माल्टीज़ क्रॉस]] है; उनकी खुशबू, वायलेट फूलों की है।
His electronic pattern is the [[Maltese cross]]; his fragrance, that of violets.
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== See also ==
== इसे भी देखिये ==
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[[Special:MyLanguage/Portia|पोर्टीआ]]
[[Portia]]
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== Sources ==
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{{MTR}}, s.v. “Saint Germain.”
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[[Category:Heavenly beings]]
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Latest revision as of 03:04, 21 November 2025

दिव्य गुरु संत जर्मेन

संत जर्मेन सातवीं किरण के चौहान हैं। अपनी समरूप जोड़ी महिला गुरु पोर्टिया - जिन्हें न्याय की देवी भी कहते हैं - के साथ, वे कुंभ युग के अधिपति हैं। वे स्वतंत्रता की ज्वाला के प्रायोजक हैं, तथा पोर्टिया न्याय की ज्वाला की।

संत जर्मेन एक कूटनीतिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। वे सभी लोग जो सातवीं किरण का आह्वान करते हैं उन में ये एक सच्चे राजनीतिज्ञ में पाए जाने वाले सभी ईश्वरीय गुणों जैसे गरिमा, शालीनता, सज्जनता और संतुलन आदि को दर्शाते हैं। ये महान दिव्य निर्देशक द्वारा स्थापित राकोज़ी हाउस के सदस्य हैं। वायलेट लौ आजकल इनके ट्रांसिल्वेनिया स्थित भवन में प्रतिष्ठित है।

संत जर्मेन नाम लैटिन शब्द सैंक्टस जर्मेनस से आया है, जिसका अर्थ है “धर्मात्मा भाई”।

इनका ध्येय

प्रत्येक दो हज़ार साल का चक्र सात किरणों में से एक के अंतर्गत आता है। ईसा मसीह छठी किरण के चौहान के रूप में पिछले 2000 वर्षों से युग के धर्मगुरु के पद पर कार्यरत थे। 1 मई, 1954 को संत जर्मेन और पोर्टिया को आने वाले युग (सातवीं किरण का चक्र) का निदेशक नियुक्त किया गया। सातवीं किरण कुम्भ राशि की है, तथा स्वतंत्रता और न्याय कुंभ राशि के स्त्री व पुरुष तत्त्व हैं। दया के साथ मिलकर वे इस व्यवस्था में ईश्वर के अन्य सभी गुणों को दर्शाने का आधार प्रदान करते हैं।

संत जर्मेन और पोर्टिया लोगों को सातवें युग और सातवीं किरण की एक नई जीवन तरंग, एक नई सभ्यता और एक नई ऊर्जा प्रदान करते हैं। सातवीं किरण को वायलेट लौ कहते हैं और स्वतंत्रता, न्याय, दया, आद्यविज्ञानऔर पवित्र अनुष्ठान इसके गुण हैं।

सातवीं किरण के चौहान (स्वामी) के रूप में, संत जर्मेन वायलेट लौ के माध्यम से हमारी आत्माओं को रूपांतरण के विज्ञान और अनुष्ठान में दीक्षा देते हैं। रेवेलशन १०.७ में जिनके बारे में भविष्यवाणी की गयी थी ये वही सातवें देवदूत हैं। ये परमेश्वर के रहस्य के बारे में बताने आते हैं,और यही उन्होंने अपने "सेवकों और भविष्यवक्ताओं को बताया है।"

संत जर्मेन कहते हैं:

मैं एक आरोहित जीव हूँ, लेकिन हमेशा से मैं ऐसा नहीं था। एक या दो नहीं, बल्कि मैंने पृथ्वी पर कई जन्म लिए हैं, और मैं इस धरती पर वैसे ही घूमता था जैसे आज आप घूम रहे हैं। मेरा नश्वर शरीर भी भौतिक आयाम की सीमाओं में बंधा था। एक जन्म में मैं लेमुरिया पर था और एक अन्य जन्म में अटलांटिस पर। मैंने कई सभ्यताओं का विकास और विनाश देखा है। मानवजाति के स्वर्ण युग और आदिम काल तक के चक्र काल के दौरान मैंने चेतना के उतार चढ़ाव को देखा है। मैंने देखा है कि किस तरह अपने गलत चुनावों के कारण मनुष्य ने हज़ारों सालों के वैज्ञानिक विकास और प्राप्त की गयी उस उच्चतम ब्रह्मांडीय चेतना को खो दिया जो आज के युग में सबसे उन्नत धर्म के सदस्यों के पास भी नहीं है।

हाँ, मेरे पास कई विकल्प थे, और अपने लिए मैंने चुनाव स्वयं किया है। सही चुनाव करके ही स्त्री और पुरुष पदक्रम में अपना स्थान निर्धारित करते हैं। ईश्वर की इच्छानुसार चलने का चुनाव करके हम स्वतंत्र हो जाते हैं, मैं भी जन्म और मृत्यु के चक्र से स्वतंत्र हो गया और फिर इस चक्र के बाहर मुझे एक जीवन मिला। मैंने अपनी स्वतंत्रता लौ से प्राप्त की, कुम्भ युग के मूलस्वर से प्राप्त की जिसे प्राचीन आद्यवैज्ञानिकों ने ढूँढा है, वही बैंगनी लौ जो संतजनों के पास रहती है...

आप नश्वर हैं। मैं अमर हूँ। हमारे बीच बस इतना ही अंतर है कि मैंने स्वतंत्रता का चुनाव किया है, और आपको यह चुनाव करना अभी बाकी है। हम दोनों की क्षमताएँ एक समान हैं, संसाधन भी एक समान हैं, और हम दोनों का उस एक (ईश्वर) से जुड़ाव भी समान है। मैंने अपनी ईश्वरीय पहचान बनाने का चुनाव किया है। बहुत समय पहले मेरे अंतर्मन से एक शांत एवं धीमी आवाज़ आयी थी: "ईश्वर की संतानों, अपनी ईश्वरीय पहचान बनाओ"। ऐसा लगा मानों ईश्वर ही कह रहे हों। रात के सन्नाटे में जब मैंने पुकार सुनी तो उत्तर दिया, "अवश्य"। उत्तर में पूरा ब्रह्मांड बोल उठा, "अवश्य" । जब मनुष्य अपनी इच्छा प्राक्जत करता है तो उसके अस्तित्व की असीमित क्षमता दिखती है...

मैं संत जर्मेन हूँ, और कुंभ युग की विजय के लिए मैं आपकी आत्मा और हृदय की अग्नि को अपने साथ ले जाने आया हूँ। मैंने आपकी आत्मा को दीक्षित करने का स्वरुप स्थापित कर दिया है... मैं स्वतंत्रता के पथ पर हूँ। आप भी उस पथ पर अपनी यात्रा आरम्भ करो, आप मुझे वहीँ पाओगे। अगर आप चाहोगे तो मैं आपका गुरु होना स्वीकार करूँगा।[1]

अवतार

स्वर्ण युग की सभ्यता का शासक

मुख्य लेख: सहारा मरुस्थल में स्वर्ण युग

पचास हज़ार साल पहले संत जर्मेन उस उपजाऊ क्षेत्र - जहाँ आज सहारा मरुस्थल स्थित है - में स्वर्ण युगीन सभ्यता के शासक थे। एक सम्राट के रूप में, संत जर्मेन प्राचीन ज्ञान और भौतिक वृतों के ज्ञान में निपुण थे। लोग उन्हें अपने उभरते हुए ईश्वरत्व के मानक के रूप में देखते थे। उनका साम्राज्य सौंदर्य, समरूपता और पूर्णता की अद्वितीय ऊँचाई तक पहुँच गया था।

समय के साथ जैसे-जैसे यहाँ के लोग ईश्वर से विमुख हो अपनी इंद्रियों के सुखों में अधिक रुचि लेने लगे, ब्रह्मांडीय परिषद ने संत जर्मेन को वहां से हटने का निर्देश दिया। परिषद् ने कहा कि लोगों के कर्म ही अब से उनके गुरु होंगे। राजा ने अपने पार्षदों और लोक सेवकों के लिए एक भव्य भोज का आयोजन किया। उनके ५७६ अतिथियों में से प्रत्येक को क्रिस्टल का एक प्याला मिला जिसमें "शुद्ध इलेक्ट्रॉनिक सार" का अमृत भरा हुआ था।

यह अमृत संत जर्मेन ने उन्हें अपनी आत्मा की रक्षा के लिए उपहार-स्वरूप दिया था, ताकि जब कुंभ के युग में स्वर्ण युगीन सभ्यता को वापस लाने का अवसर आए, तो ये सब लोग अपने 'ईश्वरीय स्वरुप' को पहचान पाएं। और, साथ ही अन्य सभी लोगों को एक संकेत भी मिले कि जब मनुष्य अपने मन, हृदय और अपनी जीवात्मा को ईश्वर की आत्मा के निवास के लिए उपयुक्त बनाता है, तो ईश्वर अवश्य उनके साथ निवास करते हैं।

भोजन के दौरान एक ब्रह्मांडीय गुरु - जिनकी पहचान उनके माथे पर लिखा शब्द 'विजय' था - ने सभा को संबोधित किया। उन्होंने लोगों को आनेवाले उस संकट के प्रति आगाह किया जो उन्होंने ईश्वर में अपने अविश्वास के कारण आमंत्रित किया था; उन्होंने लोगों को अपने ईश्वरीय स्वरुप की उपेक्षा करने के लिए डांट लगाई; और यह भविष्यवाणी भी की कि जल्द ही यह साम्राज्य एक ऐसे राजकुमार के अधीन आ जाएगा जो राजा की पुत्री से विवाह करने का इच्छुक होगा। इस घटना के सात दिन बाद राजा ही और उनका परिवार स्वर्ण-युगीन सभ्यता के आकाशीय समकक्ष नगर में चले गए। अगले ही दिन एक राजकुमार वहाँ पहुँचे और उस राज्य का कार्यभार संभाल लिया।

अटलांटिस पर उच्च पुजारी

तेरह हज़ार साल पहले संत जर्मेन अटलांटिस के मुख्य भू-भाग पर स्थित वायलेट लौ मंदिर के मुख्य पुजारी थे। उस समय उन्होंने अपने आह्वानों और कारण शरीर द्वारा एक अग्नि स्तंभ - वायलेट लौ का एक फ़व्वारा - स्थापित किया था। यहाँ दूर दूर से लोग अपने शरीर, मस्तिष्क और जीवात्मा की शुद्धि के लिए आते थे। यह वे लोग वायलेट लौ का आह्वाहन तथा सातवीं किरण के अनुष्ठानों द्वारा प्राप्त करते थे।

जिन लोगों ने वायलेट लौ के मंदिर में सेवा की उन्हें जैडकीयल के आकाशीय आश्रय स्थल टेम्पल ऑफ़ पूरीफिकेशन में मेलकिडेक समुदाय के सार्वभौमिक पुरोहिताई की शिक्षा दी गई। यह आश्रय स्थल उस स्थान पर था जहां आज क्यूबा द्वीप स्थित है। इस पुरोहिताई में धर्म और विज्ञान की सम्पूर्ण शिक्षा दी जाती है। इसी स्थान पर संत जर्मेन और ईसा मसीह दोनों का समुदाय में समावेशन हुआ था। स्वयं जैडकीयल ने कहा था, "आप सदा के लिए मेलकिडेक समुदाय के पुरोहित रहेंगे"।

अटलांटिस के डूबने से पहले जब नोआह अपना जहाज़ बना रहे थे और लोगों को आने वाले जल प्रलय की चेतावनी दे रहे थे, उस समय महान दिव्य निर्देशक ने संत जर्मेन और कुछ अन्य वफ़ादार पुजारियों को मुक्ति की लौ को टेम्पल ऑफ़ पूरीफिकेशन से निकाल कर ट्रांसिल्वेनिया के कार्पेथियन तलहटी में एक सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए कहा। यहाँ उन्होंने ऐसे समय में भी स्वतंत्रता की अग्नि को प्रज्वलित करने का पवित्र अनुष्ठान जारी रखा जब ईश्वरीय आदेश के तहत मानवजाति को उनके कर्मों का फल मिल रहा था।

आने वाले अपने सभी जन्मों में महान दिव्य निर्देशक के मार्गदर्शन में संत जर्मेन और उनके अनुयायियों ने वायलेट लौ को पुनः ढूंढा और मंदिर की रक्षा भी की। इसके बाद महान दिव्य निर्देशक ने अपने शिष्य के साथ मिलकर लौ के स्थान पर एक आश्रय स्थल स्थापित किया और हंगरी के राजघराने राकोज़ी की स्थापना भी की।

ईश्वर के दूत सेमुएल

सेमुएल एली के घर पर उन्हें परमेश्वर के न्याय के बारे में बताते हुए, जॉन सिंगलटन कोपले (१७८०)
एंटोनियो गोंज़ालेज़ वेलाज़क्वेज़ का चित्र जिसमें सैमुअल डेविड का अभिषेक कर रहे हैं

ग्यारहवीं शताब्दी बी सी में संत जर्मेन ने सैमुअल के रूप में अवतार लिया था। उस समय जब सभी लोग धर्म-विमुख थे, वे एक उत्तम धार्मिक नेता सिद्ध हुए। उन्होंने इज़राइल के अंतिम न्यायाधीश और प्रथम ईश्वरदूत के रूप में कार्य किया। उन दिनों न्यायाधीश केवल विवादों को नहीं सुलझाते थे वरन ऐसे नेता माने जाते थे जिनका ईश्वर के साथ सीधा सम्बन्ध होता था और जो अत्याचारियों के विरुद्ध इज़राइल के कबीलों को एकजुट कर सकते थे।

सैमुअल अब्राहम के वंश को भ्रष्ट पुरोहितों, एली के पुत्रों, और उन अशिक्षित लोगों (वे लोग जिन्होनें युद्ध में इजराइल के लोगों ली हत्या की थी) की दासता से मुक्त कराने वाले ईश्वर के दूत थे। पारंपरिक रूप से उनके नाम मूसा के साथ लिया जाता है। जब राष्ट्र अशिक्षित लोगों से उत्त्पन खतरों का सामना कर रहा था, सैमुएल के बहुत हिम्मत कर के लोगों को अध्यात्म के मार्ग पर लगाया, उन्होंने लोगों को “अपने पूरे दिल से नकली गुरुओं को छोड़ असली ईश्वर के ओर लौटने का आह्वान दिया [2] जल्द ही लोगों को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने पश्चाताप कर सैमुएल से विनती की कि वह उनके बचाव के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें। जब सैमुएल प्रार्थना कर रहे थे और अनेक प्रकार के त्याग कर रहे थे तो एक भयंकर आंधी आई जिससे इजराइल के लोगों को अपने शत्रुओं को परास्त करने का मौका मिल गया। सैमुएल के रहते अशिक्षित लोग फिर कभी इस्राएल पर राज्य नहीं कर पाए।

सैमुअल ने अपना बाकी जीवन पूरे देश में न्याय करते हुए बिताया। वृद्ध हो जाने पर उन्होंने अपने पुत्रों को इस्राएल के न्यायाधीश नियुक्त क्रर दिया परन्तु उनके पुत्र भ्रष्ट निकले। लोगों ने माँग की कि सैमुअल उन्हें एक राजा दे, जैसा कि अन्य देशों में था। इस बात से बहुत दुःखी होकर [3] ने ईश्वर से प्रार्थना की। फलस्वरूप ईश्वर ने उन्हें निर्देश दिया कि वे लोगों के आदेश का पालन करें। ईश्वर ने कहा, “लोगों ने तुम्हें नहीं, वरन मुझे अस्वीकार किया है, कि मैं उन पर राज्य न करूँ।”[4]

सैमुअल ने इस्राएलियों को समझाया कि राजा का शासन होने के बाद उन्हें कई खतरों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन लोग फिर भी राजा की माँग पर अटल रहे। तदुपरांत सैमुअल ने शाऊल को उनका नेता नियुक्त किया; उन्होंने उसे तथा लोगों को सदैव ईश्वर के रास्ते पर चलने का निर्देश भी दिया। पर शाऊल एक विश्वासघाती सेवक साबित हुआ इसलिए सैमुअल ने उसे दंड दिया और गुप्त रूप से राजा डेविड को राजा नियुक्त किया। सैमुअल की मृत्यु के बाद उन्हें रामाह में दफनाया गया। पूरे इज़राएल ने उनके निधन का शोक मनाया।

संत जोसेफ

मुख्य लेख: संत जोसेफ

संत जर्मेन एक जन्म में संत जोसेफ थे। वे ईसा मसीह के पिता और मेरी के पति थे। न्यू टेस्टामेंट में उनके बारे में कुछ उल्लेख मिलते हैं। बाइबल में उन्हें राजा डेविड का वशंज बताया गया है। बाइबल में इस बात का भी वर्णन है कि जब एक देवदूत ने उन्हें स्वप्न में चेतावनी दी कि हेरोड ईसा मसीह को मारने की योजना बना रहा है, तो जोसेफ अपने परिवार-सहित वह स्थान छोड़ मिस्र चले गए। हेरोड की मृत्यु के बाद ही वे वापस लौटे। ऐसी मान्यता है कि जोसेफ एक बढ़ई थे और ईसा मसीह के सार्वजनिक मंत्रालय शुरू करने से पहले ही उनका निधन हो गया था। कैथोलिक परंपरा में संत जोसेफ को विश्वव्यापी चर्च के संरक्षक के रूप में सम्मानित किया जाता है, और उनका पर्व १९ मार्च को मनाया जाता है।


एवेशम में ऑल सेंट्स चर्च में रंगीन कांच की खिड़की में संत एल्बन की तस्वीर

संत एल्बन

तीसरी शताब्दी के उत्तरार्ध में संत जर्मेन ने संत एल्बन के रूप में जन्म लिया। वे ब्रिटेन के पहले शहीद हुए। एल्बन रोमन सम्राट डायोक्लेटियन के शासनकाल में ईसाइयों पर हो रहे अत्याचारों के दौरान इंग्लैंड में थे। वे एक मूर्तिपूजक थे। उन्होंने रोमन सेना में सेवा भी की थी और बाद में वेरुलामियम नामक शहर में बस गए थे। वेरुलामियम शहर का नाम बाद में बदलकर सेंट एल्बंस कर दिया गया। एल्बन ने एम्फीबालस नामक एक भगोड़े ईसाई पादरी को छुपाया था, जिसने उनका धर्म परिवर्तन करवाया था। जब सैनिक उसे ढूँढ़ने आए तो एल्बन ने पादरी को वहां से भगा दिया और स्वयं पादरी का वेश धारण कर लिया।

जब उनका ये कृत्य उजागर हुआ तो एल्बन को मौत की सजा सुनाई गई; उन्हें कोड़े भी मारे गए। कहा जाता है कि एल्बन की फांसी को देखने के लिए इतनी लोग जमा हो गए कि वे रास्ते में आये एक संकरे पुल पर अटक गए, भीड़ पुल पार नहीं कर पा रही थी। एल्बन ने ईश्वर से प्रार्थना की और नदी का पानी भीड़ को रास्ता देने के लिए दो भागों में बंट गया। यह नज़ारा देखने के बाद जल्लाद स्वतः धर्मान्तरित हो गया, और उसने एल्बन की जगह स्वयं की मृत्यु की भीख माँगी। जल्लाद की प्रार्थना अस्वीकार कर दी गई परन्तु उसे भी एल्बन के साथ फांसी दे दी गयी।

३०३ ऐ डी में एल्बन की मृत्यु के बाद से द्वीप के लोग उनकी पूजा करने लगे। श्रद्धेय एल्बन बटलर ने अपनी किताब " लाइविस ऑफ़ फादर्स, मार्टियर्स एंड अदर प्रिंसिपल सेंटस" में लिखा है, "कई युगों तक संत एल्बन हमारे द्वीप के जाने-माने गौरवशाली शहीद और ईश्वर के संरक्षक के रूप में स्थापित रहे। उनके कारण कई बार हमें ईश्वर की कृपा प्राप्त हुई।

प्रोक्लस के शिक्षक

संत जर्मेन ने आंतरिक स्तर से नियोप्लैटोनिस्ट्स (वे दार्शनिक जिन्होंने प्लेटोनिक दर्शन का उत्तर-प्राचीन संस्करण विकसित किया था; तीसरी शताब्दी के दार्शनिक प्लोटिनस इसके संस्थापक थे) के पीछे प्रमुख शिक्षक के रूप में कार्य किया। वे यूनानी दार्शनिक प्रोक्लस (४१०–४८५ ऐ डी) के पोरेरणास्रोत थ। प्रोक्लस एथेंस में 'प्लेटो अकादमी' के प्रमुख थे और समाज के एक अत्यंत सम्मानित सदस्य थे। उन्होंने यह भी बताया की प्रोक्लस पूर्व जन्म में पाइथागोरियन दार्शनिक थे। उन्होंने प्रोक्लस को कॉन्स्टेंटाइन के ईसाई धर्म के पाखंडों के बारे में बताया, और साथ ही व्यक्तिवाद (प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में ईश्वर की खोज करे) के मार्ग का महत्व भी समझाया। ईसाई व्यक्तिवाद को "मूर्तिपूजा" कहते थे।

अपने गुरु संत जर्मेन के मार्गदर्शन में प्रोक्लस ने अपने दर्शनशास्त्र को इस सिद्धांत पर आधारित किया कि सत्य केवल एक ही है और वह है कि "ईश्वर एक है"। ईश्वर को पाना ही इस जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। उन्होंने कहा, "सभी शरीरों से परे आत्मा है, सभी आत्माओं से परे बौद्धिक अस्तित्व, और सभी बौद्धिक अस्तित्वों से परे एक (ईश्वर) है।"[5]


प्रोक्लस ने विभिन्न विषयों पर लिखा जैसे दर्शनशास्त्र, खगोल विज्ञान, गणित, व्याकरण इत्यादि। उनका मानना था कि उन्हें यह ज्ञान और दर्शन ऊपर (ईश्वर) से मिला था। उन्होंने स्वयं को एक ऐसा माध्यम माना जिससे ईश्वरीय रहस्योद्घाटन मानवजाति तक पहुँचता है।

प्रोक्लस ने यह स्वीकार किया था कि उन्हें ज्ञान और दर्शन ऊपर (ईश्वर) से मिला था। वे स्वयं को 'दिव्य रहस्योद्घाटन' का एक माध्यम मानते थे। उनके शिष्य मारिनस के शब्दों में "वे वाकई दिव्य प्रेरणा से प्रतीत होते थे क्योंकि जब उनके मुख से ज्ञानपूर्ण शब्द निकलते थे उनकी आँखों से एक तेज़ आभा निकलती थी, और उनका पूरा शरीर दिव्य प्रकाश से जगमगाता था।"[6]

मर्लिन

मुख्य लेख: मर्लिन

पाँचवीं शताब्दी में संत जर्मेन मर्लिन के रूप में अवतरित हुए। वे राजा आर्थर के दरबार में एक रसायनशास्त्री थे, भविष्यवक्ता और सलाहकार के रूप में कार्य करते थे। युद्धरत सामंतों से विखंडित और सैक्सन आक्रमणकारियों से त्रस्त भूमि में मर्लिन ने ब्रिटेन के राज्य को एकजुट करने के लिए बारह युद्धों (जो वास्तव में बारह दीक्षाएँ थीं) में आर्थर का नेतृत्व किया। उन्होंने राउंड टेबल की पवित्र अध्येतावृत्ति स्थापित करने के लिए राजा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। मर्लिन और आर्थर के मार्गदर्शन में कैमलॉट रहस्य का एक विद्यालय था जहाँ वीर पुरुष और स्त्रियां होली ग्रेल के रहस्यों को जानने के लिए अध्ययन करते थे, और स्वयं का आध्यात्मिक विकास भी करते थे।

कुछ परंपराओं में मर्लिन को एक ईश्वरीय ऋषि के रूप में वर्णित किया गया है जिन्होंने तारों का अध्ययन किया और जिनकी भविष्यवाणियाँ सत्तर सचिवों द्वारा दर्ज की गईं। "द प्रोफेसीस ऑफ मर्लिन", जो आर्थर के समय से लेकर सुदूर भविष्य तक की घटनाओं का वर्णन करती है, मध्य युग में अत्यंत लोकप्रिय थी।

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ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में रोजर बेकन की प्रतिमा

रोजर बेकन

मुख्य लेख: रोजर बेकन

संत जर्मेन एक जन्म में रोजर बेकन (१२२०-१२९२) थे। बेकन के रूप में वे एक दार्शनिक, फ्रांसिस्कन भिक्षु, शिक्षाविद्, शैक्षिक सुधारक और प्रयोगात्मक वैज्ञानिक थे। वो एक ऐसा युग था जब विज्ञान का मापदंड धर्म और तर्क पर आधारित था, और ऐसे समय में बेकन ने विज्ञान में प्रयोगात्मक पद्धति को बढ़ावा दिया; उन्होंने कहा कि दुनिया गोल है - उन्होंने उस समय के विद्वानों और वैज्ञानिकों की संकीर्ण विचारधारा की निंदा की। उन्होंने कहा कि "सच्चा ज्ञान दूसरों के अधिकार से नहीं उत्पन्न होता और ना ही यह पुरातनपंथी सिद्धांतों के प्रति अंधश्रद्धा से उपजता है।" [7] अंततः बेकन ने पेरिस विश्वविद्यालय में व्याख्याता का पद छोड़ दिया और फ्रांसिस्कन ऑर्डर ऑफ़ फ्रायर्स माइनर में शामिल हो गए।

बेकन रसायन विद्या, प्रकाशविज्ञान, गणित और विभिन्न भाषाओं पर अपने गहन शोध के लिए प्रसिद्ध थे। उन्हें आधुनिक विज्ञान का अग्रदूत और आधुनिक तकनीक का भविष्यवक्ता माना जाता है। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि आने वाले समय में गर्म हवा के गुब्बारे, उड़ने वाली मशीन, चश्मे, दूरबीन, सूक्ष्मदशंक यंत्र, लिफ्ट और यंत्रचालित जहाज़ और गाड़ियां होंगी - उन्होंने इन सब के बारे में ऐसे लिखा मानो ये उनका प्रत्यक्ष अनुभव हो।

उनके वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण, धर्मशास्त्रियों पर उनके आक्षेपों और रसायन विद्या तथा ज्योतिष शास्त्र के उनके ज्ञान के कारण उन पर "विधर्मी और असमान्य" होने के आरोप लगे। इन सब बातों के लिए उनके साथी फ्रांसिस्कन लोगों ने उन्हें चौदह साल के लिए कारावास में डाल दिया। लेकिन अपने अनुयायियों के लिए बेकन "डॉक्टर मिराबिलिस" ("अद्भुत शिक्षक") थे - ये एक ऐसी उपाधि है जिससे उन्हें सदियों से जाना जाता रहा है।

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सेबेस्टियानो डेल पियोम्बो द्वारा बनाया गया क्रिस्टोफर कोलंबस का उनका मरणोपरांत चित्र (१५१९)

क्रिस्टोफर कोलंबस

मुख्य लेख: क्रिस्टोफर कोलंबस

एक अन्य जन्म में संत जर्मेन अमेरिका के आविष्कारक क्रिस्टोफर कोलंबस (१४५१-१५०६) थे। कोलंबस के जन्म से दो शताब्दी से भी अधिक समय पहले रोजर बेकन कोलंबस की यात्रा के लिए मंच तैयार किया था - उन्होंने अपनी पुस्तक ओपस माजस में लिखा था कि "यदि मौसम अनुकूल हो तो पश्चिम में स्पेन के अंत और पूर्व में भारत की शुरुआत के बीच का समुद्र की यात्रा कुछ ही दिनों की जा सकती है।"[8] हालाँकि यह कथन गलत था क्योंकि स्पेन के पश्चिम में स्थित भूमि भारत नहीं थी, फिर भी यह कथन कोलंबस की खोज में सहायक हुआ था। कोलम्बस ने १४९८ में राजा फर्डिनेंड और रानी इसाबेला को लिखे अपने एक पत्र में ओपस माजस में लिखी इस बात को उद्धृत किया और कहा कि उनकी १४९२ की यात्रा आंशिक रूप से इसी दूरदर्शी कथन से प्रेरित थी।

कोलंबस का मानना ​​था कि ईश्वर ने उन्हें "नए स्वर्ग और नई पृथ्वी का संदेशवाहक बनाया था, जिसके बारे में उन्होंने अपोकलीप्स ऑफ़ सेंट जॉन में लिखा था, आईज़ेयाह ने भी इसके बारे में कहा था। "इंडीज के इस उद्यम को अंजाम देने में,"[9] उन्होंने १५०२ में राजा फर्डिनेंड और रानी इसाबेला को लिखा, "आईज़ेयाह पूरी तरह से सही कहा था - तर्क, गणित, या नक्शे मेरे किसी काम के नहीं थे।" कोलंबस आईज़ेयाह की ११:१०–१२ में दर्ज भविष्यवाणी का उल्लेख कर रहे थे कि प्रभु “अपनी प्रजा के बचे हुओं को बचा लेंगे... और इस्राएल के निकाले हुओं को इकट्ठा करेंगे, और पृथ्वी की चारों दिशाओं से जुडाह के बिखरे हुओं को इकट्ठा करेंगे।”[10]

उन्हें पूरा विश्वास था कि ईश्वर ने ही उन्हें इस मिशन के लिए चुना है। उन्होंने बाइबिल में लिखी भविष्यवाणियों को पढ़ा और अपने मिशन से संबंधित बातों को अपनी एक पुस्तक "लास प्रोफिसियास (द प्रोफेसीस )", में लिखा। "द बुक ऑफ़ प्रोफेसीस कंसर्निंग द डिस्कवरी ऑफ़ इंडीज एंड द रिकवरी ऑफ़ जेरुसलम" में इन बातों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखा है। हालाँकि इस बात पर कम ही ज़ोर दिया जाता है, लेकिन यह एक माना हुआ तथ्य है तथा इसके बारे में "एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका" में भी स्पष्ट रूप से लिखा है कि "कोलंबस ने खगोल विज्ञान नहीं वरन भविष्यवाणी का अनुसरण कर अमरीका की खोज की थी।"

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फ्रांसिस बेकन, विस्काउंट सेंट एल्बन, एक अज्ञात कलाकार द्वारा बनाया चित्र

फ्रांसिस बेकन

मुख्य लेख: फ्रांसिस बेकन

फ्रांसिस बेकन (१५६१-१६२६) एक दार्शनिक, राजनेता, निबंधकार और साहित्यकार थे। बेकन को पश्चिम का अब तक का सबसे बड़ा ज्ञानी और विचारक कहा जाता है। वे विवेचनात्मक तार्किकता (एक तर्क पद्धति है जिसमें विशिष्ट तथ्यों को जोड़कर एक सामान्य निष्कर्ष निकाला जाता है) और वैज्ञानिक पद्धति के जनक माने जाते हैं। वे काफी हद तक इस तकनीकी युग के लिए ज़िम्मेदार हैं जिसमें हम आज जी रहे हैं। वे जानते थे कि केवल व्यावहारिक विज्ञान ही जनसाधारण को मानवीय कष्टों और आम ज़िन्दगी की नीरसता से मुक्ति दिला सकता है और ऐसा होने पर ही मनुष्य आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर हो सकता है, व् उस उत्तम आध्यात्मिकता की पुनः खोज कर सकता है जिसे वह पहले कभी अच्छी तरह से जानता था।

"महान असंतृप्ति" (अर्थात पतन, नाश , गलतियों, और जीर्णावस्था के बाद वृहद् पुनर्स्थापना) "संपूर्ण विश्व" को बदलने का उनका तरीका था। इस बात की अवधारणा पहली बार उन्होंने बचपन में की थी। फिर १६०७, में उन्होंने इसी नाम से अपनी पुस्तक में इसे मूर्त रूप दिया। इसके बाद अंग्रेजी पुनर्जागरण की शुरुआत की।

समय के साथ-साथ बेकन ने अपने आसपास कुछ ऐसे लेखकों को एकत्र किया जो एलिज़ाबेथकालीन साहित्य के लिए ज़िम्मेदार थे। इनमें से कुछ एक "गुप्त संस्था" - "द नाइट्स ऑफ़ द हेलमेट" के सदस्य थे। इस संस्था का लक्ष्य अंग्रेजी भाषा का विस्तार करना था और एक ऐसे नए साहित्य की रचना करना था जिसे अंग्रेज लोग समझ पाएं। बेकन ने बाइबल के अनुवाद (किंग जेम्स का संस्करण) का भी आयोजन किया - उनका यह दृढ़ निश्चय था कि आम लोगों को भी ईश्वर के कहे शब्दों को पढ़ने का मौका मिलना चाहिए।

१८९० के दशक में शेक्सपियर के नाटकों के मूल मुद्रणों और बेकन तथा अन्य एलिज़ाबेथ काल के लेखकों की कृतियों में लिखे सांकेतिक शब्दों से यह आभास होता है कि बेकन ने शेक्सपियर के नाटक लिखे थे और वे महारानी एलिजाबेथ और लॉर्ड लीसेस्टर के पुत्र थे।[11] हालाँकि उनकी माँ ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया क्योंकि वह डरती थीं की सत्ता उचित समय से पहले भी उनके हाथ से निकल सकती है।

जीवन के अंतिम वर्षों में बेकन को बहुत तंग किया गया। उनकी बहुमुखी प्रतिभा को पहचानने वाला कोई नहीं था। ऐसा कहा जाता है कि उनकी मृत्यु १६२६ में हुई थी, लेकिन कुछ लोगों का दावा है कि उसके बाद भी वे गुप्त रूप से कुछ समय तक यूरोप में रहे। उन्होंने ऐसी कठिन परिस्थितियों का वीरता से सामना किया जो किसी भी सामान्य मनुष्य को नष्ट कर सकती हैं। फिर १ मई, १६८४, को उनकी जीवात्मा महान दिव्य निर्देशक के आश्रय स्थल राकोज़ी हवेली से स्वर्ग सिधार गयी।

ले कॉम्टे डे संत जर्मेन
रेम्ब्रांट द्वारा लगभग १६५५ में बनाया गया चित्र द पोलिश राइडर जिसमें संत जर्मेन को यूरोप के वंडरमैन के रूप में दर्शाया गया है[12]

यूरोप का अजूबा आदमी

मुख्य लेख: यूरोप का अजूबा आदमी

लोगों को मुक्ति दिलाने की सर्वोपरि इच्छा रखते हुए संत जर्मेन ने कर्म के स्वामी से भौतिक शरीर में पृथ्वी पर लौटने की अनुमति मांगी और उन्हें यह अनुमति मिल भी गई। वे "ले कॉम्टे डे सेंट जर्मेन" के रूप में प्रकट हुए - एक "चमत्कारी" सज्जन जिन्होंने अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के दौरान यूरोप के दरबारों को चकित कर दिया था। यहीं से उन्हें "द वंडरमैन (एक अजूबा आदमी)" का खिताब मिला।

वे एक आद्यवैज्ञानिक, विद्वान, भाषाविद्, कवि, संगीतकार, कलाकार, कथाकार और राजनयिक थे। यूरोप के दरबारों में उनकी काफी प्रशंसा की जाती थी। उन्हें मणियों की पहचान थी, उन्हें हीरे और अन्य रत्नों में दोष निकालने के लिए जाना जाता था। साथ ही उन्हें एक हाथ से पत्र और दूसरे हाथ से कविता लिखने जैसे कार्य के लिए भी जाना जाता था। वोल्टेयर के शब्दों में "वे एक ऐसे व्यक्ति थे जो कभी नहीं मर सकता, और जो सब कुछ जानता है।"[13] उनका उल्लेख फ्रेडरिक द ग्रेट, वोल्टेयर, होरेस वालपोल और कैसानोवा के पत्रों और उस समय के समाचार पत्रों में मिलता है।

परदे के पीछे से वे यह प्रयास कर रहे थे कि फ्रांसीसी क्रांति बिना रक्तपात के हो जाए - राजतंत्र को प्रजातंत्र में आराम से बदल दिया जाए ताकि जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों की सरकार हो। लेकिन उनकी इस सलाह को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। यूरोप को एकजुट करने के अपने अंतिम प्रयास में उन्होंने नेपोलियन का समर्थन किया, परन्तु नेपोलियन ने अपने गुरु की शक्तियों का दुरुपयोग किया और मृत्यु को प्राप्त किया।

लेकिन इससे भी पहले संत जर्मेन ने अपना ध्यान एक नई दुनिया की ओर मोड़ लिया था। वे संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके प्रथम राष्ट्रपति के प्रायोजक बने। स्वतंत्रता की घोषणा और संविधान उन्हीं से प्रेरित था। उन्होंने कई ऐसे उपकरणों को बनाने की प्रेरणा भी दी जिनसे शारीरिक श्रम का कम से कम उपयोग हो ताकि मानवजाति कठिन परिश्रम से मुक्त होकर ईश्वर-प्राप्ति के रास्ते पर चल सके।

सातवीं किरण के चौहान

अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, संत जर्मेन ने महिला दिव्यगुरु कुआन यिन से सातवीं किरण चौहान का पद प्राप्त किया। सातवीं किरण दया, क्षमा और पवित्र अनुष्ठान की किरण है। इसके बाद, बीसवीं शताब्दी में, संत जर्मेन एक बार फिर श्वेत महासंघ (ग्रेट व्हाइट ब्रदरहुड) की एक बाहरी गतिविधि को प्रायोजित करने के लिए आगे बढ़े।

१९३० के दशक के आरंभ में उन्होंने अपने "पृथ्वी पर कार्यरत सेनापति" जॉर्ज वाशिंगटन से संपर्क किया, और उन्हें एक संदेशवाहक के रूप में प्रशिक्षित किया। वाशिंगटन ने गॉडफ्रे रे किंग के उपनाम से, "अनवील्ड मिस्ट्रीज़", "द मैजिक प्रेज़ेंस" और "द "आई एम" डिस्कोर्सेज़" नामक पुस्तकें लिखीं जिनमें उन्होंने संत जर्मेन द्वारा नए युग के लिए दिए गए निर्देशों के बारे में लिखा। इसी दशक के अंतिम दिनों में न्याय की देवी और अन्य ब्रह्मांडीय प्राणी पवित्र अग्नि की शिक्षाओं को मानवजाति तक पहुँचाने और स्वर्ण युग की शुरुआत करने में संत जर्मेन की सहायता करने पृथ्वी पर अवतरित हुए।

१९६१ में संत जर्मेन ने पृथ्वी पर अपने प्रतिनिधि, संदेशवाहक मार्क एल. प्रोफेट से संपर्क किया और प्राचीन काल के स्वामी (सनत कुमार) और उनके प्रथम और दूसरे शिष्य शिष्य गौतम और मैत्रेय की स्मृति में लौ रक्षक बिरादरी (कीपर्स ऑफ़ द फ्लेम फ्रैटरनिटी) की स्थापना की। इनका उद्देश्य उन सभी लोगों को पुनर्जागृत करना था जो मूल रूप से सनत कुमार के साथ पृथ्वी पर आए थे। ये लोग पृथ्वी पर शिक्षकों के रूप में आये थे और इनका काम लोगों की सेवा करना था परन्तु यहाँ आकर वे सब बातें ये बातें भूल गए थे। संत जर्मेन का कार्य उन सबकी स्मृति को पुनर्स्थापित करना था।

इस प्रकार संत जर्मेन ने मूल लौ रक्षकों को प्राचीन काल के स्वामी की वाणी को ध्यान से सुनने को कहा। उन्होंने इन सभी लोगों को अपनी आत्मा में जीवन की ज्वाला और स्वतंत्रता की पवित्र अग्नि को पुनः प्रज्वलित करने और अपने जीवन को ईश्वर की सेवा में पुनः समर्पित करने के आह्वान दिया। संत जर्मेन लौ रक्षक बिरादरी के शूरवीर सेनाध्यक्ष हैं।

कुम्भ युग के अध्यक्ष

१ मई १९५४ को संत जर्मेन ने सनत कुमार से शक्ति का प्रभुत्व और ईसा मसीह से अगले दो हज़ार वर्ष की अवधि के लिए मानवजाति की चेतना को निर्देशित का अधिकार प्राप्त किया। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि ईसा मसीह का महत्व कम हो गया है। वे अब उच्च स्तरों पर विश्व गुरु के रूप में काम कर रहे हैं, और अपनी चेतना को समस्त मानवजाति के लिए पहले से भी अधिक शक्तिशाली और सर्वव्यापी रूप से दे रहे हैं क्योंकि ईश्वर का स्वभाव निरंतर श्रेष्ठ होना है। हम एक ऐसे ब्रह्मांड में रहते हैं जिसका निरंतर विस्तार होता रहता है - ब्रह्मांड जो ईश्वर के प्रत्येक पुत्र (सूर्य) के केंद्र से विस्तारित होता है।

इस दो हजार वर्ष की अवधि के दौरान वायलेट लौ का आह्वान कर के हम स्वयं में ईश्वर की ऊर्जा (जिसे हमने हजारों वर्षों की अपनी गलत आदतों द्वारा अपवित्र किया है) को शुद्ध कर सकते हैं। ऐसा करने से समस्त मानवजाति भय, अभाव, पाप, बीमारी और मृत्यु से मुक्त हो सकती है, और सभी मनुष्य स्वतंत्र रूप से प्रकाश में चल सकते हैं।

कुंभ युग की शुरुआत में संत जर्मेन कर्म के स्वामी के समक्ष गए और उनसे वायलेट लौ को आम इंसानों तक पहुंचाने की आज्ञा मांगी। इसके पहले तक वायलेट लौ का ज्ञान श्वेत महासंघ के आंतरिक आश्रमों और रहस्यवाद के विद्यालयों में ही था। संत जर्मेन हमें वायलेट लौ के आह्वान से होने वाले लाभ के बारे में बताते हैं:

आपमें से कुछ लोगों के अधिकतर कर्म संतुलित हो गए हैं, कुछ के हृदय चक्र निर्मल हो गए हैं। जीवन में एक नया प्रेम, नई कोमलता, नई करुणा, जीवन के प्रति एक नई संवेदनशीलता, एक नई स्वतंत्रता और उस स्वतंत्रता की खोज में एक नया आनंद आ गया है। एक नई पवित्रता का उदय भी हुआ है क्योंकि मेरी लौ के माध्यम से आपका मेलकिडेक समुदाय के पुरोहितत्व से संपर्क हुआ है। अज्ञानता और मानसिक जड़ता कुछ सीमा तक समाप्त हुई है, और लोग एक ऐसे रास्ते पर चल पड़े हैं जो उन्हें ईश्वर तक पहुंचाता है।

वायलेट लौ ने पारिवारिक रिश्तों में मदद की है। इसने कुछ लोगों को अपने पुराने कर्मों को संतुलित करने में सहायता की है और वे अपने पुराने दुखों से मुक्त होने लगे हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि वायलेट लौ में ईश्वरीय न्याय की लौ निहित है, और ईश्वरीय न्याय में ईश्वर का मूल्याङ्कन। इसलिए हम ये कह सकते हैं कि वायलेट लौ एक दोधारी तलवार के सामान है जो सत्य को असत्य से अलग करती है...

वायलेट लौ के अनेकानेक लाभ हैं पर उन सभी को यहाँ गिनाना संभव नहीं, लेकिन यह अवश्य है इसके प्रयोग से मनुष्य के भीतर एक गहन बदलाव होता है। वायलेट लौ हमारे उन सभी मतभेदों और मनोवैज्ञानिक समस्यायों का समाधान करती है जो बचपन से या फिर उसे से भी पहले पिछले जन्मों से चली आ रही हैं और जिन्होंने हमारी चेतना में इतनी गहरी जड़ें जमा ली हैं कि वे जन्म-जन्मांतर से वहीँ स्थित हैं।[14]

आद्यविज्ञान

मुख्य लेख: आद्यविज्ञान

संत जर्मेन ने अपनी पुस्तक "सेंट जर्मेन ऑन अल्केमी" में आद्यविज्ञान की शिक्षा देते हैं। वे एमेथिस्ट (रत्न) का उपयोग करते हैं — यह आद्द्यवैज्ञनिकों का रत्न है, कुंभ युग का रत्न है और वायलेट लौ का भी। स्ट्रॉस के वाल्ट्ज़ में वायलेट लौ का स्पंदन है और यह आपको उनके साथ तालमेल बिठाने में मदद करता है। उन्होंने हमें यह भी बताया है कि फ्रांज़ लिज़्ट का "राकोज़ी मार्च" उनके हृदय की लौ और वायलेट लौ के सूत्र को धारण करता है।

आश्रयस्थल

मुख्य लेख: रॉयल टेटन रिट्रीट

मुख्य लेख: केव ऑफ सिम्बल्स

संत जर्मेन का ध्यान सहारा रेगिस्तान के ऊपर स्थित स्वर्णिम आकाशीय शहर में केंद्रित है। वे रॉयल टेटन रिट्रीट के साथ-साथ टेबल माउंटेन, व्योमिंग स्थित अपने भौतिक/आकाशीय आश्रय स्थल, केव ऑफ सिम्बल्स में भी पढ़ाते हैं। इसके अतिरिक्त वे महान दिव्य निर्देशक के केंद्रों —भारत में केव ऑफ लाइट और ट्रांसिल्वेनिया में राकोज़ी हवेली में भी कार्य करते हैं, जहाँ वे धर्मगुरु के रूप में विराजमान हैं। हाल ही में उन्होंने दक्षिण अमेरिका में मेरु देवी और देवता के आश्रय स्थल में भी अपना केंद्र स्थापित किया है।

उनका इलेक्ट्रॉनिक स्वरुप माल्टीज़ क्रॉस है; उनकी खुशबू, वायलेट फूलों की है।

इसे भी देखिये

पोर्टीआ

स्रोत

Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Masters and Their Retreats, s.v. “Saint Germain.”

  1. संत जर्मेन, "आई हैव चोसन टू बी फ्री," Pearls of Wisdom, vol. १८, no. ३०.
  2. आई सैमुएल ७:३.
  3. १ सैमुअल ८:५.
  4. १ सैमुअल ८:७.
  5. थॉमस व्हिटेकर, द नियो-प्लेटोनिस्ट्स: ए स्टडी इन द हिस्ट्री ऑफ़ हेलेनिज़्म, दूसरा संस्करण (कैम्ब्रिज: कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, १९२८), पृष्ठ १६५.
  6. विक्टर कज़िन एंड थॉमस टेलर, अनुवादक, ट्रीयटाईसीस ऑफ प्रोक्लस, द प्लेटोनिक सक्सेसर (लंदन: ऍन.पी., १८३३), पी.वी.
  7. हेनरी थॉमस एंड डाना ली थॉमस, लिविंग बायोग्राफीज़ ऑफ़ ग्रेट साइंटिस्ट्स (गार्डन सिटी, न्यूयॉर्क: नेल्सन डबलडे, १९४१), पृष्ठ १५.
  8. डेविड वॉलेचिन्स्की, एमी वालेस एंड इरविंग वालेस की पुस्तक द बुक ऑफ प्रेडिक्शन्स (न्यूयॉर्क: विलियम मोरो एंड कंपनी, १९८०), पृष्ठ ३४६.
  9. क्लेमेंट्स आर. मार्खम, क्रिस्टोफर कोलंबस का जीवन (लंदन: जॉर्ज फिलिप एंड सन, १८९२), पृष्ठ २०७–८.
  10. एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, १५वां संस्करण, एस.वी. “कोलंबस, क्रिस्टोफर।”
  11. देखेंVirginia Fellows, The Shakespeare Code.
  12. मार्क प्रोफेट, २९ दिसंबर, १९६७
  13. वोल्टेयर, ओयूव्रेस, लेट्रे cxviii, सं. बेउचोट, lviii, पृष्ठ ३६०, इसाबेल कूपर-ओकले, द काउंट ऑफ़ सेंट जर्मेन (ब्लौवेल्ट, एन.वाई.: रुडोल्फ स्टीनर पब्लिकेशंस, १९७०), पृष्ठ ९६ में उद्धृत।
  14. संत जर्मेन, "कीप माई पर्पल हार्ट," Pearls of Wisdom, vol. ३१, no. ७२.