आकाशीय आश्रय स्थल

श्वेत महासंघ का ध्यान मुख्य रूप से आकाशीय स्तर पर केंद्रित होता है जहाँ दिव्य गुरु रहते हैं। प्रत्येक आकाशीय आश्रय स्थल में ईश्वरत्व की एक या एक से अधिक लौ संग्रहीत होती है। इसके साथ ही दिव्य गुरुओं की सेवा और पृथ्वी तथा उस पर रहने वाले प्राणियों के चार निचले शरीरों में प्रकाश के संतुलन को बनाये रखने का कार्य भी इन्ही आकाशीय आश्रय स्थलों का होता है।
आकाशीय आश्रय स्थल वह स्थान है जहाँ दिव्य गुरु रहते है। इस स्थान पर वे अपने चेलों का स्वागत करते हैं। इसे एक मंडल या एक बल क्षेत्र भी कह सकते है जिसका उपयोग सौर पदक्रम पृथ्वी गृह और वहां रहने वाले लोगों को ऊर्जा प्रदान करने के लिए करता है। यहाँ से ऊर्जा दिव्य गुरुओं और उनके चेलों को दी जाती है जिसे वे कम करके मानवजाति तक पहुंचाते हैं। मानव इस प्रखर ऊर्जा को ग्रहण कर पाएं इसलिए ऊर्जा को कम करना आवश्यक है, अन्यथा वे उसे सहन नहीं कर पाएंगे। श्वेत महासंघ के आकाशीय आश्रय स्थल तब से हैं जब से पृथ्वी का निर्माण हुआ है।
आश्रय स्थलों के कार्य
पृथ्वी पर जीवन तरंगों की सेवा करने वाले पदक्रम की परिषदों के लिए आश्रय स्थल कई प्रकार से कार्य करते हैं। कुछ आश्रय स्थल उन मानवों के लिए हैं जिनका आध्यात्मिक उत्थान नहीं हुआ है - इनकी जीवात्माएं पृथ्वी पर अपने विभिन्न जन्मों के बीच के समय में अपने आकाशीय शरीर में इन आश्रय स्थलों पर रहती हैं; ये व्यक्ति पृथ्वी पर पर रहते समय भी निद्रा या समाधि के दौरान अपने सूक्ष्म शरीर में इन केंद्रों की यात्रा कर सकते हैं।
पृथ्वी के प्रारंभिक स्वर्ण युगों के दौरान दिव्य गुरुओं के ये आश्रय स्थल और उनके रहस्यवाद के विद्यालय पृथ्वी पर ही स्थित थे। पतित देवदूतों द्वारा महा विद्रोह और उनके पतन के बाद भी ये आश्रय स्थल पृथ्वी पर ही रहे। पर बाद में जब इन आश्रय स्थलों का अनादर किया गया तथा इन्हें तोडा जाने लगा तो दिव्य गुरुओं ने इन्हें इनकी लौ के साथ ऊपर आकाशीय स्तर पर खींच लिया।
एलोहीम के आश्रय स्थल
एलोहिम के आश्रय स्थल पृथ्वी ग्रह पर सबसे शक्तिशाली माने जाते हैं क्योंकि इन जीवों की चेतना में ईश्वर की विशाल ब्रह्मांडीय जागरूकता निहित है। पृथ्वी पर एलोहिम के आश्रय स्थल और उनकी लौ के केंद्र, मानव शरीर के सात प्रमुख चक्रों के समान हैं। ये पृथ्वी के शरीर पर स्थित सात किरणों के प्रमुख केंद्र हैं। जिन जीवों का आध्यात्मिक उत्थान नहीं हुआ होता उन्हें एलोहिम के आश्रय स्थलों में नहीं ले जाया जाता क्योंकि एलोहीम के आश्रय स्थलों को पूर्णतया शुद्ध रखा जाता है ताकि इनकी तरंगों से वर्गो और पेलेउर के शरीर में जीवन संचालन किया जा सके तथा ब्रह्माण्ड के साथ एकरूप किया जा सके।
चूँकि एलोहिम के पास समस्त आकाशगंगाओं की ब्रह्मांडीय चेतना है, और महान केन्द्रीय सूर्य और सभी आकाशगंगाओं से परे एक ब्रह्मांडीय सेवा भी है, इसलिए वे अपने आश्रयस्थलों के लिए प्रतिनिधियों की नियुक्ति करते हैं जो कि इन आश्रयस्थलों के प्रशासक व् अध्यक्ष का कार्य करते हैं। इनके आश्रय स्थल पारस पत्थर की तरह एक मापदंड है, जहाँ वे ब्रह्मांडीय सेवा के दौरान समय-समय पर अपनी चेतना को स्थिर करने के लिए आते हैं। यह भी सत्य है कि ईश्वर की तरह ही एलोहीम भी अपने आश्रय स्थलों में अपनी इलेक्ट्रॉनिक उपस्थिति रख सकते हैं। वे अपनी एक प्रतिकृति, अपनी ईश्वरीय चेतना की पूर्ण प्रज्वलित वास्तविकता को अपने आश्रयस्थलों पर केंद्रित कर सकते हैं।
रहस्यवाद के विद्यालयों का आकाशीय आश्रय स्थलों में स्थापन
महा विद्रोह के फलस्वरूप मानव के पतन के बाद श्वेत महासंघ ने लेमुरिया और अटलांटिस में रहस्यवाद के विद्यालयों को स्थापित किया। यहाँ उन लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान दिया जाता था कुशल पुरुषों के सामान अनुशासन में रहना जानते थे। आधुनिक समय की बात करें तो गौतम बुद्ध का संघ, कुमरान का एस्सेन समुदाय और क्रोटोना में पाइथागोरस का विद्यालय रहस्यावाद के ऐसे कुछ विद्यालय हैं। कुछ अन्य विद्यालय हिमालय पर्वतों, सुदूर पूर्व, मिस्र , युरोप तथा दक्षिणी अमरीका में थे। परन्तु समय के साथ, एक एक कर के ये सभी विद्यालय या तो नष्ट कर दिए गए या फिर ये विघटित हो गए।
भूतल पर जहाँ जहाँ ये विद्यालय नष्ट हुए, इन्हें स्थापित करने वाले दिव्य गुरुओं ने वहां से इन विद्यालयों को अपनी लौ समेत आकाशीय तल खींच लिया। अब इन आकाशीय आश्रय स्थलों में दिव्यगुरूओं के शिष्य पृथ्वी पर अपने विभिन्न जन्मों के अंतराल या फिर निद्रा या समाधि के दौरान अपने सूक्ष्म शरीरों में प्रशिक्षण लेते हैं ताकि वे उस दिव्य आत्म-ज्ञान को प्राप्त कर सकें, जिसे सेंट जर्मेन ने इस शताब्दी में पुनः विकसित किया था - इससे पहले यह ज्ञान सदियों तक भौतिक तल पर मानवजाति को उपलब्ध नहीं था।
आश्रय स्थलों के स्थान
पृथ्वी पर दिव्य गुरूओं के आश्रय स्थलों, मंदिरों और केंद्रों की स्थापना अत्यंत वैज्ञानिक रूप से की गयी है। ये पृथ्वी मंडल के कुछ विशेष बिंदुओं पर स्थित हैं, उन बिंदुओं पर जहाँ से पृथ्वी-वासियों को सर्वाधिक ऊर्जा भेजी जा सके। पृथ्वी के ग्रेट हब (जिसे महान केंद्रीय सूर्य भो कहते हैं) पर सभी आश्रय स्थल ऊर्जा को (अन्य ग्रहों, और फ्लेमिंग योड से ) ग्रहण करने तथा फिर उस ऊर्जा को (पृथ्वी को) भेजने के स्थान हैं।
इन आश्रयों से निकलने वाला प्रकाश चुंबकीय तरंगों की तरह में पृथ्वी और आश्रय स्थलों के बीच बहता है। प्रकाश की इन तरंगों के परस्पर संपर्क से एक ब्रह्मांडीय स्वर की उत्त्पत्ति होती है जो कि महा आमीन, ओम्, या ॐ की ध्वनि की प्रतिध्वनि है, जिसे सिर्फ अपने आंतरिक कान से ही सुना जा सकता है। यह ब्रह्मांडीय मूल राग पृथ्वी, प्रकृति जगत और मानवजाति को सृष्टि के सबसे पवित्र शब्द, जिसका शाब्दिक अर्थ है "अहम्" या "ईश्वर महा आमीन है" की ध्वनि में नहला देता है। इससे हमें यह ज्ञात होता है कि प्रत्येक व्यक्ति इस शब्द की ध्वनि के साथ एकमय हो सकता है।
आश्रय स्थलों का खुलना
२६ फरवरी, १९७३ को सन्देश वाहक मार्क एल. प्रोफेट के स्वर्गारोहण के बाद, कर्म के अधिपति ने ईश्वर के सभी पुत्र और पुत्रियों (पृथ्वी-वासी) को स्वयं के कर्मो को संतुलित करने का मौका दिया। इसके लिए उन्हें सात चौहानों, महा चौहान और विश्व के अन्य अध्यापकों के आश्रय स्थलों पर चलने वाली कक्षाओं में विद्या ग्रहण करनी होगी।
१ जनवरी १९८६ को गौतम बुद्ध और कर्म के अधिपतियों ने सप्त किरणों के अधिपतियों की एक याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें उन्होंने अपने आकाशीय आश्रय स्थलों में आत्मा के विश्वविद्यालय खोलने का अनुरोध किया था ताकि हज़ारों छात्र व्यवस्थित रूप से सप्त किरणों पर आत्म-प्रवीणता प्राप्त कर सकें। निद्रा के दौरान अपने सूक्ष्म शरीरों में भ्रमण करते हुए, छात्र चौहानों और महा चौहानों के प्रत्येक एकांतवास में चौदह दिन बिताते हैं।
इसे भी देखिये
अधिक जानकारी के लिए
Elizabeth Clare Prophet, The Opening of the Temple Doors
El Morya, The Chela and the Path: Keys to Soul Mastery in the Aquarian Age, पांचवा अध्याय.
स्रोत
एलिजाबेथ क्लेयर प्रोफेट, २२ फरवरी १९७५
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, Saint Germain On Alchemy: Formulas for Self-Transformation.
Mark L. Prophet and Elizabeth Clare Prophet, The Path to Immortality.